Blue collar-unstopped journey of life
Blue collar- unstopped journey of life |
मैंने शौक से कभी कहानियाँ नही लिखी ,ये वो सबकुछ था जिसे मैंने जिया और देखा ।महज इतेफाक नही था ये । जिंदगी के दो दशक जीने के बाद और कई सारे लोगो को खोने के बाद मालुम चला की पूरी उम्र हम खुद की तलाश में भटकते रहते है । हम भटकते है की कोई हमे समझें और हमे हमारे होने का एहसास कराये । और यकीन कीजिये अंत में सबकुछ खाली होता है । हो भी क्यों न ,वो जो नही मिला ,वो हमारे अन्दर ही तो था ,हो सकता है इसे कोई न पढ़े ये भी हो सकता है की इसे कोई न जानना चाहे ,पर मुझे नही लगता इसे मैं खुद तक रखना चाहूंगी । मैं कोई दार्शनिक नही हु, और न कोई बाबा जो भविष्य बताये ,पर पुरे होसो आवाज़ में और पूरी सिद्दत से ये बात बोल सकती हु, की जो मुझे नही मिला शायद आपको मिले ,मैं चाहूंगी आप मेरा दर्द पढ़े ,क्या पता वो आपका दर्द हो.......
Blue collar- unstopped journey of life
दृश्य-1 "
नरेन्द्र तुम फिर लेट आये,ये क्या लगा रखा है रोज़ रोज़ का , ग्रुप-c के चपरासी हो तुम ,कितनी बार तुम्हे बोल चूका हु की मेरे एक सिग्नेचर से तुम्हारी नौकरी चली जायेगी"- शार्मा जी, जो पी०डब्लू0डी के के लिपिकीय पद पर तैनात थे नरेन्द्र को डांटते हुवे बोले । ये हर दो दिन बाद का था । हर दो दिन बाद ऐसी ही परिस्तीथियो से दो चार होता था नरेन्द्र । घर में बूढी मााँ और बिन ब्याही बहन और नरेंद्र। बचपन सेेेे ही पढ़ने में होशियार और किताबों में रूचि लेने वाला नरेंद्र आज शर्माा जी की किसी बात का जवाब नही दे सकता था। एक लिपिक होकर मुझे निकालने की बात करता है ,सिर्फ 10 मिनट ही तो लेट हुवा हु ,कौन सा पहाड़ टूट गया , जब घंटो ये टेबल पर जमवाड़ा लगाकर गपसप करते है तो उसका कुछ नही ये वो बाते थी जो नरेन्द्र अन्तर्मन में अपने आपसे कर रहा था। उसे अच्छी तरह याद था वो दिन जब 7वि कक्षा के पहले दिन वो नए स्कूल में गया । नया अंग्रेजी का स्कूल , चेहरे पर एक रौब का भाव ,आँखों में अंग्रेजी सपने ,नरेन्द्र उस दिन बहुत खुश था । कक्षा में जाते ही अध्यापक ने नरेन्द्र का परिचय सभी सहपाठियों से कराया। ये सफ़ेद और चमचमाता सफ़ेद कुर्ता और नीला पाजामा,जुबान पे फर्राटेदार अंग्रेजी में एक बच्चे ने नरेन्द्र से पूछा- "व्हाट डू यू वांट इन योर लाइफ " ??? कक्षा का वातावरण थोडा चहल-पहल भरा जरुरु था ,पर नरेन्द्र अन्दर ही अन्दर सिवाए देखने के कुछ न बोल सका । ये हिंदी वालो की एक समस्या रही है ,वो सुनते सबकुछ है ,समझते भी है बहुत कुछ बोलना भी चाहते है पर बोले तो बोले कैसे ,अंग्रेजी उन्हें उस कोयल की तरह लगती है जो बड़ी मीठी तो है पर कभी वो उनकी आवाज़ में गाती नही ।
Blue collar- unstopped journey of life
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एक शाम जब वो काम से घर लौट रहे थे ,चौराहे पर मुन्सीपाल्टी की गाडी ने उन्हें धक्का मार दिया और वो मौके पर ही चल बसे । हादसा एक सरकारी गाडी से हुवा था ,ये खबर आग की तरह पुरे मोहल्ले में फ़ैल गई । नरेद्र की माँ का रो-रो के बुरा हाल था ,परन्तु नरेन्द्र अभी सिर्फ इसी ख़यालात में था की अब उसका क्या होगा ? घर चलाने वाले वो इकलौते थे । पिताजी की लाश के आगे उसका अफसरशाही वाला ख्वाब ध्वस्त होता नज़र आ रहा था । उसके आँखों में आंसू सिर्फ इस बात के थे की अब घर कैसे चलेगा । किससे वो कॉलेज की फीस लेगा और आगे पढ़ेगा । मृत्यु के बाद कुछ लोगो के कहने पर नरेन्द्र ने सरकारी लोगो पर मुकदमा अपने पितजी की मौत के लिए मुकदमा कर दिया । किसी की सलाह थी की हादशा सरकारी गाडी से हुवा है तो मुआवजा मिलना चाहिए । मोहल्ले के सभी आदर्श लोगो ने नरेन्द्र को सुझाव दिया । उसके पास तो मुकदमा दाखिल करने के पैसे तक नही थे । समाज की कोरी विडम्बना रही है ,सलाह मुफ्त है साथ की उम्मीद न करे आप । नरेन्द्र को अपना घर गिरवी रखना पड़ा । वो ये भी जानता था और आज भी आम लोग जानते है की सरकार कोई गली का दुकानदार नही जिसे 1 पैसा ज्यादा लेने पर कोई भी धमका के चला जाए और देख लेने की धमकी देता है। सरकार एक बहुत बड़ा निकाय है ,उससे जितना मतलब खुद में सिकंदर वाली फीलिंग का आना । मुकदमा कोर्ट गया । सभी उत्सुक थे की क्या होगा । मैं आपको बता दू,अगर आपका दुःख सिर्फ आपका है तो वो दुःख है अगर बाजार में गया तो मदारी बन जायेंगे आप । हजारो चेहरे होंगे ,हजारो जुबान होगी पर आपके हाथो में हाथ नही होगा । कैसे हुवा क्यों हुवा ,अब तुम क्या करोगे और कैसे करोगे थक चूका था नरेन्द्र इन सब बातो से । उसके पिताजी की मौत न हुई कोई इलेक्शन का मुद्दा हो गया ,सभी क्षेत्रीय पार्टी के लोग आये उसके घर आते और उसका साथ देने की बात करते । नरेन्द्र को पिछले 10 दिनों में इन्साफ मिला हो या न मिला हो पर पार्टी वाले 1 कप चाय और साथ की नमकीन गटक कर जाते । सरकारी बाबू भी आये बोले लड़ो तुम जीतोगे ,कमबख्त उन्हें कौन बताये की उन्हें जीतकर सिकंदर नही ,अफसर बनाना था ।
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click-क्या भारत दुनिया के नक्से से मिल जाएगा जानिये
माँ के आँखों के आंसू सुख चुके थे ,घर बिक चूका था ,हजारो बार सरकारी दफ्तर के चक्कर काटने और बाबुओ के पाँव पकड़ने के बाद सिर्फ एक ही चीज़ मिली थी उनको "आश्वाशन"। मोहल्ले में किराए के मकान में रहते कुल 2 वर्ष बीत चुके थे। नरेन्द्र का सपना सिर्फ सपना बन कर रह गया था ।न जाने उसे क्यों नफरत सी होने लगी थी इस व्यवस्था से ,सर का छत , बाप की परछाई और खुद का सपना सब कुछ ले चूका था ये "अफसरशाही" वाली व्यवस्था । उसके सपनो में अब कटाक्ष था । कुल 2 वर्ष की मसक्कत और रिसर्च के बाद सरकारी अमला ये सिद्ध करने में सफल हुवा की नरेन्द्र के पिता की मौत सरकारी लापरवाही नही बल्कि एक तकनीकी खराबी और मानवीय भूल से हुई । सरकारी अमला नरेन्द्र को अंग्रेजी में समझाता रहा की ये "unintended accident " था । इस बार भी 7वी वाला नरेन्द्र चुप था । जब सामने टाई लगाए Blue Collar वाला अफसर खड़ा हो और एक हत्या को हादसा सिद्ध कर रहा हो तो यकीन मानिए पू।री व्यवस्था उस कालिख की तरह लगती है जिसे देखना सब चाहते है पर कोई लेना नही चाहता । मुआवजे के तौर पर नरेन्द्र को PWD में संतरी की नौकरी मिली । आज नरेन्द्र सरकारी फाइलों को ढोने का काम करता है ।ओ वो सरकारी बाबुओ के साथ मिल कर आम आदमी के हुक को दफ़नाने का भी काम करता है । उसने बड़े करीब से इन Blue-collar अफसरों को परखा है और जान चूका है की ये जो 'कुछ नही करते न ये वोही है जो सबकुछ करते है '. रोज़ उसी डांट को सुनता हुवा नरेन्द्र नही चाहता उसकी पीड़ी 'चपरासी' बने । वो अब किसी को अफसर भी नही बनते देखना चाहता । 5 वर्ष हो गए है नौकरी के पर नरेद्र को वो 7वी कक्षा के मास्टर याद है जिन्होंने कहा था "नरेन्द्र " कोई बड़ा अफसर बनेगा .................
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इस कहानी के सारे पात्र काल्पनिक है पर ये कहनी विषय-वस्तु में सच की घटना पर आधारित है । हम सभी में एक नरेन्द्र है ,और वो इतना मासूम है की सिस्टम की धुप और छाव से बेखबर है । हम सब सपने देखते है और उसे हर दिन जीते है । सपना "blue collar" वाला सपना , कभी घर की आंच तो कभी खुद का पेट न जाने कितने नरेन्द्र को मार देता है । इस सरकारी तंत्र का भी योगदान कम नही है । चाहे वो छपरा की JAYPRAKASH UNIVERSITY का 5 साल में बी.ए पास कराना हो या फिर IGNOU में पिछले 4 साल से पास होने के लिए संघर्ष कर रहे 'राहुल " की कहनी हो । सरकारी तंत्र बराबर का जिम्मेदार है , इन Blue-collar वालो को मारने में । आज भी कोई सरकारी बैंक हो ,दफ्तर हो या फिर कार्यालय अगर कर्मचारी सरकारी है तो आप "याची" है ,आप निर्मम है और आप कतार में है । न जाने कितने लोगो को रोज़ बेज्ज़ती का सामना करना पड़ता है ,और न जाने कितने लोग इस व्यवथा से तौबा करते है । बात यही पर खत्म नही होती सीखने सिखाने की इस हिन्दुस्तानी तहजीब में रोज़ एक Blue-collar वाला दुसरे Blue-collar वाले को मारता है । मुझमे भी नरेन्द्र है ,पर अफसरशाही वाला नही, और न ही "Blue-collar" वाला नरेन्द्र है तो सिर्फ है इस सरकारी तंत्र पर खीझ निकालने वाले "नरेन्द्र".....
(इस ARTICLE का मकसद सरकारी बाबुओ का "तानाशाही " रवैया दिखाना है ,भारत जैसे देश में लालफितासाही की नही और न ही इन Blue-collar वालो की जरुरत है ,जरुरत है तो मजलूमों और दुखियो के "साह" की किसी सुझाव और जानकारी के लिए हमे लिखे ...
also read-जिंदगी का सौदा और सरकारी नौकरी....
अपनी ही मौत अपने हाथो से ....
(पूर्वी)
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