Sarkari Naukri
Sarkari-Naukri |
कहने और सुनने सुनाने के लिए बहुत से विषय हैं। चाहे कोई व्यक्ति हो या देश हर स्तर पर कुछ बुराइयां हैं तो कुछ अच्छाईयां है। हमारा पूरा ध्यान बुराइयों को खत्म करने पर होना चाहिए और ऐसा ही एक विषय है जो हमारे सरकारी तंत्र से जुड़ा हुआ है, जिसे हम अन्य भाषा में "सरकारी पद" या "बड़ा ओहदा "से समझ सकते हैं।
Sarkari Naukri
हमारे भारत जैसे देश में जहां हर घर-परिवार के लोगों की एक सोच
होती है की उनके घर के लोगों या सदस्यों और उनके बच्चों की सरकारी नौकरी
हो। इस बात पर हमारे यहां बहुत जोर दिया जाता है। सरकारी नौकरी हर घर के लोगों और खासतौर से मां-बाप का सपना होता है कि उनके बच्चों की Sarkari Naukri हो और यह सपना हर सपने से कहीं बड़ा होता है। मानो यह मिल जाए तो फिर जिंदगी में किसी चीज की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
यह सवाल उठता है कि हर किसी को सरकारी नौकरी की चाहत क्यू है या इच्छा क्यों है ? आइए हम आपको बताते हैं इसके पीछे का कारण-
Sarkari Naukri ka Sach
(1)- भारत में लोग sarkari naukri करना चाहते हैं जिसके लिए बच्चों को बचपन से ही हिदायत दी जाती है कि अच्छे से पढ़ाई करो ताकि आगे sarkari Naukri की तैयारी करने में बाद में ज्यादा दिक्कत हो सामना ना करना पड़े और आसानी से एग्जाम क्रैक किया जा सके।
(2)- हमारे यहां समाज में एक तरह से लोगों की सोच बन चुकी है जिसे बदल पाना शायद बहुत ही मुश्किल है। लोगों की सोच है कि सरकारी नौकरी करने
वाले की समाज में इज्जत होती है। हालांकि इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि
जो व्यक्ति सरकारी नौकरी करता है वह किस तरह का काम करता है बस "सरकारी नौकरी"
का ठप्पा ही लोगों में "रौब" झाड़ने के लिए काफी होता है। लोगों का मानना
है प्राइवेट जॉब करने वालों की समाज में लोग उतनी इज्जत नहीं करते हैं।
(3)- सरकारी नौकरी में
व्यक्ति सुरक्षित महसूस करता है कि वह अपने रिटायरमेंट तक काम कर सकता है
और उस समय तक उसे कोई हटा नहीं सकता। जब तक कि वह कोई जुर्म नहीं करता या
कोई संगीन मामला ना हो। जबकि प्राइवेट जॉब में मार्केट में जरा सा भी बदलाव
वह मंदी आने पर जोब से निकाल दिया जाता है।
(4)-
प्राइवेट जॉब में काम करने और करवाने का कोई तौर- तरीका नहीं होता।
प्राइवेट जॉब में काम करने वाले कर्मचारियों का ना तो सैलरी निर्धारित होती
है और ना काम करने के घंटे। प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले
कर्मचारियों का शोषण भी बहुत होता है इसलिए लोग प्राइवेट कंपनियों में काम
करने से डरते हैं। जबकि विदेशों में वहां प्राइवेट संस्थानों के लिए सख्त
नियम-कानून और कायदे बनाए गए हैं और वहां काम करने वालों के अधिकारों की
सुरक्षा और ख्याल रखा जाता है। लेकिन सरकारी नौकरी में काम करने वाले कर्मचारियों का एक कार्यप्रणाली होती है और काम करने का समय निर्धारित होता है।
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(5)- सरकारी नौकरी में पद के हिसाब से पैसा निर्धारित होता है लेकिन प्राइवेट में नहीं।
(6)- सरकारी नौकरी में पैसे के साथ-साथ बहुत तरह की सुविधाएं और भत्ते दिए जाते हैं लेकिन प्राइवेट जॉब में नहीं।
(7)-
अक्सर सरकारी जॉब में काम करने का दबाव कम होता है और काम भी कम होता है।
प्राइवेट में काम ज्यादा करना पड़ता है और हमारे यहां के लोगों की मानसिक
प्रवृत्ति है कि वह आराम ज्यादा और काम कम करना चाहते हैं। जिससे साफ जाहिर
होता है कि हमारे यहां के लोग बहुत ही ज्यादा आलसी हैं।
(8)- सरकारी नौकरी में चाहे देश के हालात कुछ भी हो लेकिन समय पर पैसा जरूर मिलता है।
(9)-
एक और ऐसा खास मुद्दा है हमारे यहां पर जो कि यह है कि सरकारी नौकरी होने
पर शादी करने में दिक्कतें नहीं आती है शादी आसानी से हो जाती है।
(10)-
सरकारी नौकरी होने पर दहेज अच्छा मिलता है या फिर दहेज की मांग लोग ज्यादा
कर सकते हैं यह एक तरह की मानसिक प्रवृत्ति है हमारे यहां की।
(11)- बिना पैसा लगाए कारोबार
(12)- किसी क्रिएटिविटी की जरूरत नहीं पड़ती। अपनी तरफ से कोई मेहनत और पहल करने की जरूरत नहीं पड़ती
है।
(13)-
बने बनाए ढर्रे पर चलना। फायदा और नुकसान के मॉडल से छुटकारा और बाजार में
जूझने और कहीं पैसा लगाकर काम शुरू करने के डर से मुक्ति।
(14)- आम जनता और लोगों पर रौब झाड़ने के लिए सरकारी नौकरी जरूरी समझी जाती है।
(15)- झूठी शान और बान के लिए।
यह
कुछ ऐसे पॉइंट थे जिसकी वजह से लोग सरकारी नौकरी में जाना चाहते हैं। और
इसी वजह से हमारे लोगों को सरकारी नौकरी बहुत ही भाती है जिससे वो और उनका
परिवार सुखी रहे, उनके घर में दाना-पानी की व्यवस्था बनी रहे, आराम मिलता
रहे बाकी देश-दुनिया से कोई मतलब नहीं, ज्यादा काम ना करना पड़े। इन सब
बातों से आप समझ सकते हैं कि हमारे यहां के लोगों को सब कुछ फ्री में
चाहिए। समय-समय पर घर पर पैसा आता रहे।
Berojgaari aur Sarkari Berojgaar
सरकारी नौकरी की तैयारी करते वक्त बस लोग जोर-शोर से
पढ़ाई करते हैं, कईयों किताबों को रटू तोते की तरह रटते हैं और किसी तरह
एक्जाम क्रैक करते हैं।सरकारी नौकरी मिलते ही सारी कहानी खत्म हो जाती है।
इसके बाद वह पढ़े-लिखे और सरकारी अफसर जरूर कहलाते हैं। भले ही उन्हें
तैयारी करते वक्त जो कुछ भी पढ़ा-लिखा था उसमें से कुछ भी याद ना हो लेकिन
इन सब चीजों के बावजूद वह पढ़े-लिखे और सरकारी अफसर जरूर कहलाते हैं। जो भी
विद्यार्थी सरकारी नौकरी की तैयारी करता है और उसका एग्जाम क्रेक होने के
बाद जब वह इंटरव्यू देने के लिए इंटरव्यू पैनल के सामने बैठते है और जब
इंटरव्यू पैनल यह सवाल करता है कि वह इस क्षेत्र में क्यों आना चाहते थे।
अक्सर लोगों का जवाब होता है कि वह देश के लिए कुछ करना चाहते है उन्होंने
सिस्टम में वो खामियां देखी या सही जो मानव जाती के लिए कलंक से कम नही
,यही वजह है की वो सब कुछ ठीक करना चाहते थे और बड़े स्तर पर करना चाहते थे
इसलिए उन्होंने इस प्रोफेशन का रुख किया I
ये तब तक सच है जब तक की उन्हें वो कुर्सी नही मिल जाती फिर यही लोग उसी सिस्टम में जाकर उसी सिस्टम का हिस्सा बन जाते है I
हालांकि
यह बात बिल्कुल सच है की सरकारी नौकरी में लोगों को बहुत सारी-सुविधाएं
मिलती हैं, राहत मिलती है। लेकिन क्या यह जायज है कहना कि हर किसी को
सरकारी नौकरी की तैयारी करनी चाहिए या सिर्फ उसी क्षेत्र में जाना चाहिए ?
वह भी किसलिए ? वह भी सिर्फ इसलिए की वहां पर सारी सुख-सुविधाएं और आराम
मिलता है। हमारे देश की जनसंख्या जहां 1.36 अरब हो चुकी है। ऐसे में सरकारी
नौकरी की तैयारी कर रहे सभी विद्यार्थियों को सरकारी नौकरी मिल पाना
नामुमकिन है। लेकिन फिर भी हर किसी को शिकायत रहती है कि सरकार रोजगार के
अवसर पैदा नहीं कर रही है या उन्हें रोजगार नहीं दे रही है। यह सोचने वाली
बात है कि सरकार इतने सारे लोगों के लिए रोजगार कहां से लाए, जहां की
जनसंख्या और आबादी इतनी ज्यादा है कि हर एक को सरकारी नौकरी मिलना नामुमकिन
है। यह खुद अपने-आप में एक सवाल है जो लोगों को सोचना चाहीए
Akhir kyo hai akarshan sarkari naurki ka
सरकारी
नौकरी में सिर्फ उन्हीं लोगों को जाना चाहिए। जो लोग स्वयं के दम पर कोई
उद्योग-धंधा शुरू नहीं कर सकते हैं या उद्योग-धंधा शुरू कर पाने में असमर्थ
हैं। जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत है जो लोग अपने और अपने परिवार के
भरण-पोषण के लिए स्वमं कोई कारोबार शुरू नहीं कर सकते और सरकारी स्तर पर
देश के लिए कुछ काम करना चाहते हैं। लेकिन होता बिल्कुल इसके विपरित है जो
लोग धन-धान्य से परिपूर्ण है ऐसे लोग भी अपने बच्चों को सरकारी नौकरी के
लिए दबाव डालते है। अगर ऐसे लोग चाहे तो कोई लघू-उदयोग शुरू करके कई लोगों
को रोजगार दे सकते है। रोजगार के नऐ मौके ला सकते हैं।
यह
कोई जरूरी नहीं है की धन से संपन्न लोग हि कोई उद्योग या कारोबार की
शुरुआत कर सकते हैं। आए दिन आपने ऐसे बहुत से उदाहरण देखे होंगे जब गरीब से
गरीब का कोई व्यक्ति भी कोई लघु-उद्योग शुरू करता है और लाखों लोगों को
रोजगार देता है। यह हम जैसे मध्यवर्गीय परिवार के लोग भी कर सकते हैं लेकिन
कोई भी जिंदगी में रिस्क लेना नहीं पसंद करता। बहुत कम ऐसे लोग हैं जो
रिस्क ले कर कोई काम या किसी चीज की शुरुआत करते हैं । ऐसे परिस्थिति में
दो ही चीज होती है या तो इंसान सफल होता है या तो गिर जाता है। लेकिन मे
बीच में फस कर नहीं रहता है तो बेहतर है कि जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए
अगर जरा सा रिस्क लेना पड़े तो व्यक्ति को जरूर रिस्क लेना चाहिए। क्योंकि
बिना रिस्क लिए जिंदगी में कोई भी व्यक्ति तरक्की नहीं कर सकता है।
हर किसी को अपने आसपास का माहौल अच्छा चाहिए I
सड़कें अच्छी चाहिए स्कूल अच्छा चाहिए कॉलेज अच्छा चाहिए नए-नए टेक्नोलॉजी
चाहिए अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए और अपने घर में सुख सुविधाएं भी चाहिए
लेकिन कोई भी सरकारी नौकरी की चाह से बाहर नहीं आना चाहता और अपने देश की
और अपनी तुलना हमेशा विकसित देशों से करता है I अब बाहरी देशों में उदाहरण
के तौर पर अमेरिका जैसे देश में वहां पर लोग टैलेंट को अहमियत देते हैं और
इसी बुनियाद के ढांचे पर आज वह बहुत ही आगे हैं अगर वह भी सरकारी नौकरी के
पीछे भागते तो ना ही नए अविष्कार हो पाते ना ही नहीं सोच किसी के सामने आ
पाती और ना ही वहां पर जो लोगों की लोगों में जो खूबियां हैं वह बाहर आ
पाती और ना ही उनका देश तरक्की करता I दिक्कत यह है कि हमें सब कुछ चाहिए
लेकिन हम अपने बने बनाए ढांचे को तोड़ना नहीं चाहते और उससे बाहर नहीं
निकलना चाहते।लेकिन जब भी हम बाहर विदेशों में घूमने के लिए जाते हैं तो हम
वहां की तारीफ जरूर करते हैं कि वहां पर आगे सड़के अच्छी हैं वहां के
इंफ्रास्ट्रक्चर अच्छे हैं वहां के लोग अच्छे हैं जब तक आप अपने आप को एक
सीमित दायरे में रखेंगे आप तरक्की नहीं कर सकते हैं और ना ही आप में नई सोच
और ना ही नई चीजें आ सकती हैं I
हमारे
भारत जैसे देश में जहां की आबादी 1.36 अरब है वहा हमारे देश में नौजवानों
की जनसंख्या ज्यादा है जिनके अंदर बहुत सी प्रतिभा छिपी हुई है जिन्हें
बाहर लाने की जरूरत है क्योंकि जब तक नई नई चीज है नए अविष्कार नहीं सोच
बाहर नहीं आएंगे हम तरक्की नहीं कर सकती हैं हालांकि वो अलग बात है कि देश
तरक्की जरूर करना है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बहुत सारे लोग अपने जीवन
के लिए एक सरकारी नौकरी के पीछे झोंक देते हैं और कुछ चुनिंदा लोग ही जो इन
बने बनाए ढर्रे पर नहीं चलते हैं वही देश को आगे ले जाते हैं और ऐसे ही
लोगों ने अपने समाज में होने वाले बहुत से कुरीतियों को भी समाप्त किया है
क्योंकि जहां नई सोच होती है वही तरक्की की राह होती है।
इंडिया
टुडे के रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में ग्रुप-डी की नौकरी के लिए 5 लाख
लोगों ने आवेदन किया था। जिसमें से ज्यादातर एमबीए और इंजीनियर और
ग्रेजुएशन कर रहे विद्यार्थी शामिल थे। इस नौकरी के लिए मात्र 10 वीं पास
होना आवश्यक होता है। लेकिन इतना हाईली क्वालिफाइड विद्यार्थियों ने भी
इतनी छोटी सी नौकरी के लिए आवेदन किया था। ये अभी आंकड़े डराने वाले हैं
क्योंकि आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि कितने बुरे हालात हैं। लोगो को
जिंदगी में ग्रोथ बेसक नही चाहिए लेकिन एक बंधी बंधाई तन्खाह उन्हें जरूर
चाहिए ,अपने इंजिनियर होकर अगर चपरासी बनेंगे तो फिर जिसे चपरासी होना
चाहिए वो कहा जाएगा I कायदे से देखा जाए तो हर कोई एक दुसरे का रोजगार छीन
रहा है I
https://www.google.com/amp/s/www.indiatoday.in/amp/mail-today/story/5-lakh-including-mba-engineers-post-graduates-apply-to-become-gardener-and-watchman-in-bihar-1623159-2019-11-28
https://www.google.com/amp/s/www.indiatoday.in/amp/mail-today/story/5-lakh-including-mba-engineers-post-graduates-apply-to-become-gardener-and-watchman-in-bihar-1623159-2019-11-28
भारत
काफी लंबे समय तक गुलाम रहा है और कहीं ना कहीं हमारे पूर्वजों से हमें यह
गुलामी की प्रवृत्ति मिली है। हालांकि नई पीढ़ी में बदलाव हो रहे हैं और
नई- नई सोच उभर कर सामने आ रही है लेकिन फिर भी आज के लोगों में यह
प्रवृत्ति बनी हुई है। ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी के पीछे भागते हैं और
जिंदगी में कोई रिस्क लेना पसंद नहीं करते हैं। हमारा देश लोकतांत्रिक देश
है तो ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोग सरकारी दफ्तरों में कार्य करना चाहते
हैं जो कि अच्छी बात है लेकिन ऐसे लोग जो इस क्षेत्र में नहीं जाते जाना
चाहते ऐसे लोग भी सरकारी नौकरी के पीछे भागते हैं जिनमें कुछ अच्छा करने की
प्रतिभा होती है।
सरकारी नौकरियों
में सुरक्षा और आय तो तय होती है। इसलिए हम कुछ अच्छा और बेहतर करने की
सोचते ही नहीं है। लेकिन जो विद्यार्थी इस से भी अच्छा कुछ बेहतर कर सकते
हैं उनकी प्रतिभा भी भीड़ में दबकर रह जाती है।सरकारी दफ्तरों में जो ऊंचे
दर्जे के अधिकारी होते हैं उन पर फिर भी कार्य का भार ज्यादा होता है
लेकिन जो निचले स्तर के अधिकारी होते हैं उन पर काम का दबाव कम होता है और
सही कहे तो, जो लोग देश भक्ति नारा लगाकर सरकारी क्षेत्रों में घुसते हैं
वही लोग भ्रष्टाचार फैलाने का कार्य भी करते हैं। इसी आरामदेही इच्छा की
वजह से आम जनता को बहुत ही तकलीफ और परेशानियां उठानी पड़ती है। ऐसा बहुत
ही कम देखने को मिलता है के ईक्का-दुक्का अधिकारी ही अपना काम ईमानदारी से
करते हैं।
हमारे देश में सरकारी नौकरी जैसी
चीज को हमारा समाज बहुत ही बड़ा-चढ़ा के पेश करता है और हऊआ बना देता है,
अपने मान-सम्मान और रूतबे से जोड़ कर देखता है। हालांकि ऐसा होना नहीं
चाहिए क्योंकि कोई भी काम जो समाज कल्याण के लिए होता है उसे एक कार्य के
नजरिए से ही देखना चाहिए। किसी भी चीज को बढ़ा-चढ़ाकर और रैब झाड़ने के
इरादे में नहीं पेश करना चाहिए। इससे लोगों में ईष्र्या, अराजकता, असंतोष
की भावना उत्पन्न होती है।
Sarkari Naurki ke faayde
अधिकतर
मामले ऐसे देखे गए हैं जहां पर अधिकारी अपना अधिकतर समय वकेशन या कहीं
विदेश में घूमने पर समय जायर करते हैं। जो काम पूरा करने का उन्हें टारगेट
दिया जाता है उस समय वह घूमने, खाने-पीने में मस्त रहते हैं। जब रिपोर्ट
पेश करने अंतिम समय आता है उस समय वह आंकड़ों, पैसों में हर चीज में
हेरा-फेरी करते हैं, झोल-झाल करते हैं, और भ्रष्टाचार फैलाने का कार्य करते
हैं।जिससे आम जनता को बहुत ही परेशानी उठानी पड़ती है।
अगर
आपको सरकारी दफ्तरों का हाल जानना है तो आप अपने किसी भी नजदीकी सरकारी
दफ्तर में चले जाएं। जहां ज्यादातर आपको यह देखने को मिलेगा की सरकारी
अधिकारी समय पर नहीं आते हैं या तो कई दिनों तक आते ही नहीं है। और दफ्तरों
में फाइल पर फाइल लदी होती है और काम ठप रहते हैं। बाहर आम जनता लाइन में
खड़े होकर अधिकारियों का इंतजार कर रही होती हैं जिनका ना तो आने का समय
फिक्स होता है और ना ही जाने का और आम जनता परेशान रहती है । सरकारी
अधिकारी अपने में मशगूल रहते हैं ।अगर सरकारी नौकरी में दिए गए तमाम
सुविधाएं छीन लिया जाए तो शायद ही कोई सरकारी क्षेत्र में जाना पसंद
करेगा। सरकार को भी जरूरी चीजें ही लोगों को मुहैया करानी चाहिए क्योंकि
तमाम तरह की सुख-सुविधाएं मिल जाने से सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले
लोग आलसी बन जाते हैं और भ्रष्टाचार फैलाते हैं।
निष्कर्ष -
"भारत का संविधान " लक्ष्मीकांत की किताब पढने पर मालुम चलता है की "राज्य" की परिकल्पना एक कल्याणकारी राज्य के रूप में की जाती है I जिसका मकसद है राज्य की भलाई करना ,और वहां के जीवन स्तर और मान सम्मान को उठाने के लिए नित्य प्रयतनशील रहना Iअंग्रेजी काल से ही बड़ी प्रशासनीक जिम्मेदारियां मान सम्मान का जनक रही है I सरकारी नौकरी सिर्फ आकर्षण में ही नही है रही ,बल्कि जीवन पर्यंत एक मकसद बन कर रह जाती है I एक प्रकृतीक कौसल जो किसी मनुष्य में बचपन से होता है ,इस आकर्षण में खो जाता है की "उसे अफसर " बनान है ,अधिकारी बनाना है ,और सच कहू तो न वो तो इंसान बन पाता है और न अफसर I जीवन यापन के लिए वो किया जाना चाहिए ,जिसे आप बेहतर कर सकते है ,जिसे करने में आप माहिर है I यकीन कीजिए जिस दिन "कौशल" के दम पर और "अभिरुचि " के अनुरूप युवा अपना रास्ता चुनेगा उस दिन भारत अन्य देशों से २ कदम आगे होगा I
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(सभी पाठको को रंगों के त्यौहार होली की हार्दिक सुभकामनाये )
अपने विचार,कोई घटना और सुझाव हमे लिखे .
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Nice work thanks for this post
ReplyDeleteThnx for your valuable words..Visitors feedback is the keywords to provide the higly concerned article ..
DeleteRegards- Purvi
Maza agya bro mastt
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