आज के नौजवान और अनैतिक कार्य (part-3) - tHink sOcial Agenda

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Sunday, February 2, 2020

आज के नौजवान और अनैतिक कार्य (part-3)

जनाब अपने लैपटॉप पर पहले से ही 2,3 चीजो का पेज खोल कर बैठे रहते थे जैसे:- कोई गाना या फिल्म या कोई गेम और जैसे ही कोई इनके पास से होकर गुजरता था। वह इनमें से कोई एक चीज अपने लैपटॉप पर लगा कर रख देते थे ताकि दूसरे व्यक्ति को लगे कि वह या तो फिल्म देख रहे थे या कोई खेल, खेल रहे थे। जब कोई भी उनके आस-पास से होकर नहीं गुजरता था तब वह मैडम जी के साथ चैटिंग करने में मशगूल रहते थे। जब कभी मैडम जी किसी कारणवश किसी काम में व्यस्त हो जाती थी तो जनाब अकेले पड़ जाते थे। तब जाकर उन्हें फुर्सत मिलती थी। किसी के साथ उठने-बैठने की या अपने परिवार के साथ दो पल बैठने की नहीं तो कमरे में बैठकर लैपटॉप पर कोई गेम खोल लिया करते थे और अपने कमरे के दरवाजे को उस समय थोड़ा सा खोल देते थे ताकि दूसरों को लगे कि जनाब दिन भर कोई फिल्म देखते हैं या गेम खेलते हैं लेकिन मैडम जी से बात करते समय उसके कमरे के दरवाजे हमेशा बंद ही रहा करते थे।

                            मैडम जी के एक इशारे पर जनाब रात भर जगने के बावजूद सुबह-सुबह तैयार हो जाया करते थे। मैडम जी को पिकअप करने के लिए। इतनी फुर्ती उनमें अपने परिवार के लोगों के लिए नहीं थी। अगर जब कभी उसकी बहनों को कहीं आना-जाना होता था या अपने किसी दोस्त के शादी में हमें जाना होता था या साधन ना मिल पाने की वजह से घर आने में कभी देरी हो जाती थी तो यही लड़का कहा करता था क्या मेरे से पूछ कर गई थी, कैसे भी आए-जाए मुझे क्या करना या फिर मरे कहीं जाकर मुझे क्या !। किसी शादी की वेबसाइट पे उसने किसी लड़की को देखा था जिसे वह कभी मिला नहीं ना ही जानता था, जिसको उसने कभी देखा नहीं उस लड़की के लिए उस लड़के ने अपने मां-बाप को भला-बुरा कहा। सोचने वाली बात थी किसी को देखते ही वह इतना उतावला हो गया था तो मिलने पर क्या करता।

                       रिश्तेदारों के बीच जा के अपने ही परिवार की बुराई करना, अपने ही मां-बाप को गालियां देना उन्हें मूर्ख,गधा और न जाने किस-किस नाम से बुलाना क्या यह पहचान है एक अच्छे इंसान की ? या पढ़े लिखे इंसान की ? कहा तो यही जाता है कि  एक अच्छे डिग्री वाले लोग, अच्छे पढ़े-लिखे लोग समझदार और सभ्य हुआ करते हैं क्या इस कहानी से यह साबित होता है कि कोई पढ़ा लिखा इंसान ऐसा हो सकता है ?  उस आदमी के लिए आधुनिक विचार सिर्फ उसके लिए होती थी  लेकिन बाकी अन्य लोगों पर वह रूढ़ीवादी विचार थोपता था। वास्तव में वो एक संकीर्ण मानसिकता और घटिया विचारधारा रखने वाला व्यक्ति था। हर चीज का जिम्मेदार वह अपने मां-बाप को ठहरा देता था और खुद अच्छा बना रहता था जब भी कोई किसी चीज या विषय के बारे में उससे बात करता था तो वह उन सब चीजों के लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ अपने मां-बाप को ठहरा देता था और दुनिया भी सारे सवाल-जवाब सिर्फ मां-बाप से ही पूछा करती हैं जिसकी वजह से वह खुद को कई बार लाचार पाते हैं।

                             एक बार उसके पास से कंडोम मिलता है जिसके लिए उसके पास सीधा सा जवाब था कि वह उसका नहीं है। सोचने वाली बात हुई थी कि क्या वह कोई कीमती धरोहर थी जो किसी ने उसको संभाल के रखने के लिए दी थी या फिर किसी की जमीन-जायदाद के पेपर या कोई जवाहरात जिसे उसे बहुत ही संभाल के रखना था। अगर यही चीज उसकी बहनों के पास मिलती तो शायद घर में भूचाल आ गया होता उसके सवाल खत्म नहीं होते हैं और ना ही उसके पिता जी के और घर के अन्य सदस्यों के लेकिन उसकी बात सिर्फ इतने में ही खत्म हो गई कि वह उसकी नहीं है। हालांकि हकीकत क्या थी उसकी बहनें बखूबी जानती थी। जिस तरह का वह लड़का था निहायती घटिया और वाहियात। लेकिन कुछ भी कहना बेकार था। जब मां-बाप को ही फर्क नहीं थी तो फिर किसे किस बात की फिक्र थी। इसके बावजूद भी उनमें इतना हौसला था कि वह अपनी झूठी हिम्मत के दिखावे को सबके सामने दिखावा कर रहा था जैसे वो बहुत ही महान इंसानों हो और उसने कुछ किया ही नहीं है। जो भी उनकी हां में हां मिलाता था वह सब लोग उसके लिए बहुत अच्छे होते थे और जो उनके खिलाफ बोलता था वह मूर्ख और गधे हुआ करते थे। वह हर किसी को सही-गलत का पाठ पढ़ाया करता फिर भले ही उनमें से कोई गुण खुद में ही क्यों ना हो।

                             वह जब दूसरी जगह नौकरी करने जा रहा था। तब नया साल शुरू होने वाला था और घर से तो वह यही कहकर निकले थे कि अब वह दूसरी जगह जा रहे हैं लेकिन उन्होंने कुछ दिन दिल्ली में ही गुजारा था। घरवालों को बेवकूफ बनाना बहुत ही आसान काम था और वह बनते भी थे और वह यह बात बहुत ही अच्छे से जानता भी था और इसलिए वो उन्हें बेवकूफ भी बनाता था। लेकिन उनको क्या पता की वो जो फुर्सत की सांस लेता था उसका भी कोई हिसाब रखता था। इससे पहले वह प्लानिंग कर रहा था। उत्तराखंड जाने की लेकिन किसी कारणवश प्लान कैंसिल हो गया। तो अब वो दूसरी जगह जाने से पहले नए साल पर चार-पांच दिन दिल्ली में ही बिताया उसके बाद वह दूसरी जगह नौकरी के लिए गए।

                      उसके दो चेहरे थे। एक वो जो वह लोगों के बीच अच्छा बना रहता था। दूसरा वह जो वह वास्तव में था। उसकी बहनें बहुत अच्छे से जानती थी उसके असली चेहरे को। उस लड़के को एक चीज बहुत अच्छे से पता थी कि लोगों को किताबी बातें बहुत अच्छी लगती हैं, संस्कारों की बातें अच्छी लगती हैं, सभ्यता की बातें करना अच्छी लगती है, पढ़ाई की बातें करना अच्छा लगता है , जीवन में आगे बढ़ना, तरक्की की बातें करना  ऐसी बातें लोगों को बहुत पसंद आती हैं और अक्सर वह लोगों के बीच इन सब विषयों से संबंधित बातें करता था। इन सब चीजों से संबंधित उपदेश दिया करता था। फिर चाहे भले ही वह इनमें से कोई भी चीज खुद पर लागू ना करता हो।  लोग भी अक्सर चिकनी-चुपड़ी और मीठी  बातें करने वाले लोग पसंद आते हैं। सच कहा जाए तो दुनिया सिर्फ जो चीज देखती है उसी पर यकीन करती है। पर्दे के पीछे छिपी हकीकत हो शायद ही कोई पढ़ सकता है।

                     मैडम जी से बात करने के लिए जनाब घर से मिलो दूर जाया करते थे। इतनी दूर के छत पर से देखने से एकदम छोटे से दिखाई देते थे और वो जाते इसलिए थे कहीं उनका भेद ना खुल जाए। ऑफिस से आने के बाद घंटों गाड़ी में ही बैठे रह जाया करता था। जब कभी जल्दी आ जाया करता था तो घर से दूर निकल जाया करता था और दो-तीन घंटे फोन पर बात करने के बाद घर में घुसा करता था। ऑफिस  जाते वक्त गाड़ी में बात करते हुए जाना, ऑफिस से आते वक्त बात करते हुए आना। अब उनकी जिंदगी फोन पर बातें और लैपटॉप पर चैट करते हुए कट रही थी।

                     जब किसी दोस्त का फोन आ जाया करता था तो जो साफ-सुथरी बातें हुआ करती थी वो जनाब फोन लाउडस्पीकर पर रख कर बात किया करते थे। जो उनके मतलब की बातें हुआ करती थी वह घर से दूर जाकर बातें करते थे। हालांकि हैरानी होती है इस बात पर कीक्षयह वही शख्स है जिसकी बहनों का अगर किसी स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाले दोस्तों का फोन आ जाया करता था तो वह बातें सुनने के लिए वही खड़े हो जाया करते थे या फिर चक्कर उसके आस-पास  चक्कर लगाया  करता था और हिदायत भी देता था कि उनके सामने ही रहकर बात करें और हमेशा यह भी जानने की कोशिश किया करता था कि क्या बातें हो रही है। हमेशा उनके फोन चेक किया करता था। अपनी जैसी चीजे उनके फोन में तलाश किया करता था लेकिन अफसोस जब‌ वैसी कोई बात थी ही नहीं तो फिर मिलती कहां से।  अगर वो  किसी अपने निजी काम से बाहर जाया करती थी तो जनाब पुरी जांच-पडता करते थे। उसके लिए भी उसे सफाई चाहिए होती थी। क्यों ? किस लिए गए ?।जब कभी लडकीयों को अपनी किसी दोस्त की शादी में जाना होता था तो वो तय किया करते थे कि वह अकेले जाए या किसी को साथ लेकर जाएं, उनको( लडकीयों) जिंदगी में क्या करना है, क्या नहीं करना है, यह भी वही तय करते थे। फिर बाद में लोगों के बीच बोला करते थे इंसान को आजादी है अपने हिसाब से अपना काम करने की हर किसी का आजादी है अपने जिन्दगी का रास्ता बनाने की, लेकिन वह सब किताबी बातें होती थी जो लोगों के बीच वाह-वाही लूटने के लिए बोला करता था।कितनी अजीब बात थी यह वही शख्स था जिसे खुद के कारनामे नहीं दिखाई देते थे। गलत होने के बावजूद भी वह सभ्य बना हुआ था और जिसने कभी कुछ किया ही नहीं उसे उसने भरी सभा में बदनाम कर दिया। उसकी बहने उससे बेहद घृणा करती थी और उसका चेहरा कभी नहीं देखना थी।

                     इस कहानी से यह साबित होता है कि आजकल के ज्यादातर नौजवान और लोग जो काफी चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं और लोगों को ज्ञान बांटते हैं लेकिन उनके काम खुद बयां करने लायक नहीं होते हैं। ऐसे ही लोगों की तादाद इस दुनिया में ज्यादा है जिनके पास बड़ी डिग्रीयां है। अच्छे ज्ञानवर्धक बातें भी हैं लेकिन जो समाज में सिर्फ गंदगी फैलाते हैं। जो बिल्कुल आज-कल के ढोंगी बाबाओं की तरह होते हैं ज्ञानवर्धक बातें जनता के लिए और  पर्दे के पीछे काले कारनामे उनके हुआ करते हैं। जिनकी वजह से उनके घर का माहौल भी खराब रखता हैं और उनके अनैतिक कार्य के बारे में उनके मां-बाप को भी नहीं पता होता। अगर किसी कारणवश पता भी चल जाए तो ऐसे भी मां-बाप हैं जो अपने बच्चों के कारनामों और गलत काम को सुधारने की बजाय उन्हें बढ़ावा देते हैं और फिर गीत गाते हैं कि दुनिया बुरी है, समाज में गंदगी है लेकिन कोई खुद के अन्दर झांक के नहीं देखता। कभी भी किसी व्यक्ति को किसी के चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए।



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