Shaadi ya Sauda
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शादी एक ऐसा बंधन है जो प्राचीन काल से ही मात्र संतान उत्पति और पीड़ी दर पीड़ी अपने वंस को आगे बढ़ने का माध्यम माना जाता था। ये महिलाओं के लिए स्वैच्छिक नही था ,अगर महिला किसी पुरुष के साथ बंध गई तो यू समझ लीजिये की फिर जीवन भर का साथ देना होता था । जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ा राष्ट्र के लोगो की अवधारणा बदलती गई । स्टेट ने हर चीज़ को नियंत्रीत करने के लिए कुछ नियम और कानून बनाए । विवाह का बंधन भी इस बदलाव से अछुता नही रहा । बाद में जाकर हिन्दू मैरिज एक्ट 1954 और मुस्लिम मैरिज एक्ट 1969 में बना । इसमें कुछ संसोधीत कानून थे जो विवाह जैसी संस्था को नियंत्रीत करते है । सरकारी कानूनों ने विवाह को एक नई पहचान दी । महिलाओ को ज्यादा से ज्यादा अधिकार दिए गए । किन-किन परिस्तीतियों में विवाह मान्य होगा ये बताया गया । परन्तु वो अधिकार जो कुछ पन्नो में कैद थे क्या वाकई एक महिला को सजीव रूप प्रदान करते है ?? क्या आज भी महिलाओं को ऐच्छिक रूप से जीवन साथी चुनने का अधिकार है ? किन-किन मामलो में शादी को एक समझौता नही माना जाएगा क्या कोई प्रारूप है समाज में ?? ये कुछ चुनिन्दा सवाल है जो हर एक फेमिनिस्ट आदमी पूछना चाहेगा ?? सच कहू तो इस पुरे लेख का मकसद महिलाओं की वर्तमान सामाजिक स्थीति और जीवन साथी चुनने के अधिकार से जुड़ा है । 21वी सताब्दी में भी अगर कोई महिला अपने मूलभूत अधिकारों की जंग लडे तो यू समझ लीजिये की आप चाँद पर नही आज भी आप 2 गज जमीन की तलाश कर रहे है जहा आप खड़े होकर अपना परिचय दे पाए । ऐसे ही एक इस्त्री के विचार उसके अपने शब्दों में पढ़िए जिसके लिये विवाह सिर्फ समझौता बन कर रह गया ......
भारत जैसे देश में शादी एक बहुत ही पवित्र रिश्ता माना जाता है। शादी का मतलब एक ऐसा रिश्ता जहां पर दो अनजान लोग और परिवार एक दूसरे से जुड़ते हैं। लेकिन हमारे देश में शादी के मौके पर या फिर यूं कहें शादी के बहाने दुसरो को लूटने का रिवाज है। जो हमारे यहां की परंपरा और रीति-रिवाज बन चुकी है। क्या आपको ऐसा नहीं लगता की ऐसी परंपरा और रीति-रिवाज को तोड़ने की आवश्यकता है और इसकी निंदा की जानी चाहिए ?Shaadi ya Sauda
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हैरानी की बात तो ये है की क्या वास्तव में लोगों को एक-दूसरे की जरूरत होती है या है या सिर्फ दौलत के आधार पर जरुरत को खरीदा जाता है ?? यह एक तरह का सौदा ही तो हुआ जिसमें लड़की को बेचा जाता है। ऐसा लगता है मानो लड़की कोई निर्जीव वस्तु हो या उस सामान की तरह है जिसे दुकानदार बेचता है। बिल्कुल उसी तरह जब कोई दुकानदार सामान बेचने के लिए बाजार में अपनी दुकान खोलता है और ग्राहकों से विनती करता है कि "भैया यह सामान आप खरीद लीजिए मैं इस सामान का सही कीमत या सही रेट लगा दूंगा, बहुत ही अच्छा सामान है ऐसा सामान बाजार में आपको कहीं नहीं मिलेगा कृपया करके इसे खरीद लीजए" । जिस तरह दुकानदार और ग्राहक के बीच सामान के लिए मॉल-भाव होता है ठीक उसी प्रकार आज शादी के समय लड़की का भी मोल-भाव किया जाता है।
अधिकतर मामले में ऐसा देखा गया है, जब कभी लड़के वाले किसी के घर लड़की देखने जाते हैं। और लड़की देखने के बाद यदि उन्हें लड़की पसंद आ जाती है, तो उसके बाद मोल-भाव का सिलसिला शुरू हो जाता है। ऐसा लगता है मानो वह लड़की देखने के उद्देश्य से नहीं कितना ज्यादा दहेज मिलेगा उस उद्देश्य से आते है। जिसमें लड़की एक सामान की तरह घर के किसी कोने में पड़ी होती है। सौदा करके उसे एक जगह से दूसरी जगह फेंक दिया जाता है।
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किस तरह की विडंबना है हमारे समाज की जहां लोग शादी जैसी संस्था को पवित्र मानते हैं और साथ में इसका मोल-भाव भी करते हैं। उस समय लालची लोग अपने अंदर बसे लालच के राक्षस को अपना सम्मान बता कर अहंकार दिखाते हैं। जब कभी भी शादी की बात आती है तो लड़के और लड़के के घर वाले और लड़की के घर वालों की राय जरूरी समझी जाती है, जिसमें लड़की से उसकी मर्जी नहीं पूछी जाती। और फिर बाद में यह कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है की बेटी हम तो तुम्हारे लिए अच्छा घर-परिवार और अच्छा वर ढूंढ रहे हैं इससे अच्छा रिश्ता हमें कहीं नहीं मिलेगा और तुम्हें क्या चाहिए। सब कुछ वही लोग तय कर लेते हैं।जैसे एक सामान को किसी दूसरे जगह रखने के लिए व्यवस्था की जाती है। जिसके लिए पूरी अच्छी व्यवस्था की जाती है सिर्फ उस समय के लिए जब तक वह सामान वहां रखा ना जाए। बिल्कुल लड़की की स्थिति भी उसी भांति होती है।
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हमारा समाज कितने खोखले और लालची लोगों से भरा हुआ है। जब भी घर-परिवार में शादी की बात चलती है, लड़के वाले लड़की को देखने के लिए लड़की के घर जाते हैं और वहां पर लड़की के घर वाले उनका बहुत ही जोर-शोर और सम्मान से उनका स्वागत करते हैं आइए-आइए बैठीए। लड़की को बुलाया जाता है और लड़की को एक पुतले की तरह सबके सामने बैठा दिया जाता है। यदि लड़कों वालों को लड़की पसंद आ जाती है। उसके बाद लड़के वाले बोलते हैं हमारे बेटा बहुत ही पढ़ा लिखा है, उसके पास बहुत बड़ी डिग्री है और कमाता भी बहुत अच्छा है तो उस हिसाब से हमें दहेज भी चाहिए।
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लड़की का बाप चाहता है किसी तरह सेट उसके सर से बोझ उतर जाए उसकी बेटी का रिश्ता हो जाए । इसी जद्दोजहद में वो लड़कों वालो की बात मान लेते है। लेकिन कितनी अजीब बात है ना, हमारे समाज में लड़की का बाप कितना बेबस और लाचार होता है या फिर यूं कहें इतना कमजोर और कायर होता है कि उसके लिए उसकी बेटियां इतनी बोझ लगने लगती है की वो किसी तरह उन्हें ( बेटी) निपटने में लग जाते हैं। वह किसी भी दानव को अपनी बेटी को देने से नहीं कतराते है। बल्कि होना यह चाहिए की दहेज की मांग करने वाले ऐसे शख्स को लड़की के परिवार वालों के द्वारा धक्के मार कर बाहर भगा देनी चाहिए। क्योंकि जो लोग अभी दहेज का मांग कर सकते हैं उन लोगों का कोई भरोसा नहीं कि वह आगे भविष्य में किसी चीज की मांग ना करें।
लेकिन होता क्या है ? हमारे समाज में शादी जैसी चीज एक मजबूरी बन जाती है जिसे लड़की के घरवाले लड़की को निपटाने के लिए या यूं कहें अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाने के लिए लड़की को किसी भी हाथ में सौंप देते हैं, और फिर वहीं से शुरू होता है मारपीट, दहेज के लिए जलाने और मारने का सिलसिला। ऐसे में लड़की का बाप किसी तरह से दहेज देने की व्यवस्था करता है चाहे उसे दहेज देने ले लिए अपना घर ही गिरवी क्यों ना रखना पड़े। लेकिन ऐसे लोगों को जरा सोचना चाहिए कि क्या अगर दहेज देने से ही रिश्ते जुड़ते है तो क्या फायदा ऐसे रिश्ते का। ऐसे रिश्ते को ठुकरा देना चाहिए जहां लोग इंसान से नहीं जुड़ते बल्कि धन और दौलत के बदौलत एक दूसरे से जुड़ते हैं।
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इस तरह से दहेज का इंतजाम होने के बाद शादी तय होती है और कितनी अजीब बात है ना शादी की बातें सिर्फ लड़के और लड़की के घर वालों के बीच हो जाती है और लड़की से उसकी राय या इच्छा नहीं पूछी जाती। जैसे वह कोई सामान हो जिसे उस घर से हटाकर दूसरे घर में रखना हो। और यदि कभी गलती से लड़की से पूछ भी लिया जाता है कि लड़का कैसा है और यदि उसने इंकार कर दिया तो उसे जलील किया जाता है यह कहकर कि कब तक हमारे छाती पर बैठी रहोगी या फिर तुम्हारे लिए अब एक अच्छा राजकुमार कहां से लाएं। हमारी बस इतनी ही हैसियत थी और जो लड़का हमने तुम्हारे लिए ढूंढा है वह बहुत ही अच्छा है इससे अच्छा लड़का तुम्हें नहीं मिल सकता।
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लेकिन लड़के के विषय में ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता लड़के की हर फरमाइश पूरी की जाती है उसकी जरूरतों का ख्याल रखा जाता है, यह उम्मीद की जाती है कि लड़के को जो कुछ भी चीज पसंद है ,जैसा वह चाहता वह खूबी लड़की में है या नहीं है अगर नहीं है तो वह चीज है वह सीखे और लड़के को कैसे खुश रखना है, घर परिवार कैसे चलाना है यह सब वह सीखे । जैसे कि लड़की एक रोबोटिक मशीन है जिसे कमांड दिया जाता है कि तुम्हें यह काम करना है और वह काम करने लग जाती है जैसे लड़की को लड़के की जरूरत है लेकिन लड़के को लड़की की जरूरत नहीं है। अगर लड़का किसी लड़की को पसंद करने से इंकार कर दे तो उसके घर वाले उसे किसी तरह का दबाव नहीं देते। क्योंकि लड़के को शहजादा माना जाता है और जो लड़के की मर्जी होती है उसी के हिसाब से काम किया जाता है। लेकिन लड़की के विषय में ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है उसे तो एक घर से दूसरे घर फेंक दिया जाता है एक समान की तरह।
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(Pics are taken from a website due to privacy we can't reveal the name )
अगर लड़का सामान्य पढ़ा लिखा होता है तो दहेज भी उसी हिसाब से दिया जाता है। अक्सर देखा यह गया है जो जितने ऊंचे पद पर होता है उसके उतने ही नखरे और अकड़ होती है। जैसे अगर कोई एक लड़का प्राइवेट नौकरी करता है और उसकी सगाई हो चुकी है तो दहेज उसी हिसाब से होता है ।अगर वह कोई सरकारी पद हासिल कर लेता है तो उसकी मांग और बढ़ जाती है। आप ऐसे मामले अक्सर अखबारों में और अपने समाज देख सकते हैं। आए दिन ऐसे बहुत से मामले सामने आते हैं जब एक लड़का किसी सरकारी पद पर होता है तो उसकी मांग भी उसी हिसाब से हो जाती है और लड़की वाले अपनी बेटी का रिश्ता कराने के लिए लाखों और करोड़ों का सौदा करते हैं। सबसे विचित्र बात तो ये है की आज मार्किट में ऐस पैमाने भी आ गए है जिससे आप ये पता कर सकते है की कौन कितना दहेज़ का हकदार है ।जैसे dowry calculator ,dowry estimator आदि । एक सरकारी दस्तावेज के अंतर्गत हर साल 1.2 /100000 महिलाये दहेज़ के लिए मार दी जाती है । अब विडम्बना ये है की हम विवाह को किस तरह से दो आत्माओ या 7 जन्मो को रिश्ता कहे , क्या ये दकियानूसी बाते नही की एक तरफ तो हम "बेटी बचाओ और बेटी पढाओ " का नारा देते है फिर उसी बेटी को दहेज़ के लिए या तो मार देते है या फिर उसका जीवन नरकीय बना देते है ।
एक बात समझ में नहीं आती अगर सौदा ही करना है तो सामान का कीजिए किसी इंसान का क्यूं। पहली बात ऐसी जगह रिश्ता ही नहीं जोड़ना चाहिए जहां रिश्तो को पैसों से तैला जाता है। दहेज देने के लिए लड़की के परिवार वालों को अपना घर, जमीन, जायदाद सिर्फ इसलिए गिरवी रखना पड़ता जाता है कि उन्हें अपनी बेटी की शादी किसी तरह करना है और शादी में अपार दहेज देना है।
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लेकिन इतने पढ़े लिखे समाज का क्या फायदा जब समान और इंसानों में लोगों को फर्क ही नजर नहीं आता हो । लोगों को भी ऐसे रिश्ते स्वीकार नहीं करनी चाहिए जहां पर सौदे से रिश्ते बनते हो और फिर बाद में एक घटना का रूप धारण कर लेते हैं जैसे आए दिन या आपने बहुत से ऐसे मामले देखे होंगे जब शादी के बाद लड़कों के घर वालों की तरफ से हमेशा कुछ ना कुछ या किसी ना किसी तरह की मांग की जाती है और जिसे देने में लड़की के घरवाले असमर्थ होते हैं जिसकी वजह से लड़की को जला दिया जाता है या मार दिया जाता है ऐसी परंपरा और रिति का हमें अपने समाज से बहिष्कार कर देना चाहिए।
aslo read-सपनो का क़त्ल और सरकारी भ्रष्ट तंत्र
क्या भारत दुनिया के नक़्शे से खत्म हो जाएगा ??
अगर आपकी भी कोई ऐसी कहानी हो या फिर कोई ऐसी घटना हो तो हमे शेयर करे
हम पहुचाएंगे उसे ऐसे लोगो तक जहा से स्तीथियाँ बदलनी शुरु होती है ........
हमे लिखे -thinksocialagenda121@gmail.com
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ReplyDeleteI m happy to receiving your feedback .Thank you , will do the same
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