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Wednesday, February 19, 2020

"भारत की विलुप्त होती सभ्यता और संस्कृति, तथा पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ते कदम"

भारत की विलुप्त होती सभ्यता और संस्कृति  


भारत की संस्कृति विश्व की बहुत ही प्राचीन 
संस्कृति है। भारत का इतिहास बहुत ही महान रहा है। हमारे देश में विभिन्न धर्म-जाति के लोग रहते हैं। यहां पर सभी की अपनी-अपनी विभिन्न बोली जाने वाली भाषाएं हैं,रीति-रिवाज,रहन-सहन,वेश-भूषा,साहित्य और वेद-पुराण है। हमारी पहचान हमारे देश की मिट्टी और यहां की संस्कृति और सभ्यता से है। दुनिया में हर देश का एक अपना ही इतिहास रहा है जिससे वह जाना जाता है। हमारे भारत देश की प्राचीन सभ्यताएं और संस्कृति इस बात को स्पष्ट करते हैं कि यह देश है वीरो का यहां के महान बुद्धिजीवी शासकों का। हमारे देश में हर धर्म संप्रदाय के लोगों को समान आदर किया जाता हैं। यहां के महान शासकों ने भी हमेशा इसी नीति का पालन किया है जिसकी वजह से पूरी दुनिया में इसकी एक अलग ही पहचान और छवि है। हमारे देश की एक खास आदर्शवादी परंपरा रही है। जिसका पालन राजतंत्र और लोकतंत्र में भी किया गया है। 

आज हमारा देश जिस दौर से गुजर रहा है उसको देख कर ऐसा लगता है जैसे एक बहुत ही अजीब तरह का तूफान या आंधी चल रही है जिसकी चपेट में लगभग सभी आ चुके हैं। वो पहले वाला साहस,वीरता,बुद्धिमता आज के लोगों में नहीं रह गया है जो पहले कि पहले के लोगों और शासकों में हुआ करता था। आज के लोगों को एक ही चीज आती है जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं। वह अलग बात है कि देश तरक्की कर रहा है। लेकिन आज का जो समय है वह आधुनिकता का दौर है और हर किसी को समय और जरूरत के अनुसार खुद में और समाज में बदलाव करते रहना चाहिए। हालांकि कुछ कुरीतियां भी रही है जो समय के साथ खत्म हो चुकी है और अब भी जो गलत चीजें हैं उन में समय की जरूरत के अनुसार बदलाव हो रहा है। लेकिन क्या यह सही है? हम अपनी पहचान भूल जाए, अपनी देश की मिट्टी को भूल जाएं, यहां की संस्कृति और सभ्यता को पीछे छोड़ दें,जिससे हम जाने जाते हैं, जिसकी वजह से हमारी पहचान है।

 
एक तरफ लोग गर्व महसूस करते हैं कि वह एक भारतीय हैं। यहां की मिट्टी से जुड़े हुए हैं। यहां की सभ्यता, रीति-रिवाज,खान-पान और रंग-बिरंगी,वेश-भूषा पर गर्व करते हैं। जिसको दूसरे देश विभिन्नता में एकजुटता का मिसाल देते हैं। इन सब चीजों की वजह से भारत की पूरी दुनिया में एक अलग ही पहचान और छवि बनी हुई है। जो विभिन्नता में एकता का पुरी दुनिया में मिसाल देता है। हमें अपने देश और अपनी तरक्की को साथ-साथ लेकर चलना चाहिए। हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता, वेश-भूषा और परंपरा को साथ ले के चलना चाहिए। लेकिन हम लोग यह सब चीजें करने की वजह है पश्चिमी सभ्यता का जोरों-शोरों से प्रचार कर रहे है। पश्चिमी सभ्यता की ओर कदम बढ़ाए जा रहे हैं। उनके खान-पान से लेकर उनके पहनावे और रहन-सहन सब चीजों का आज के लोग और खासकर हमारे आज के नौजवान अंधे, गूंगे-बहरो की तरह आंख मूंद के पालन कर रहे हैं। पश्चिमी सभ्यता के लोगों को अपनी सभ्यता का प्रचार करने की आवश्यकता ही नहीं है जब उनके बिना कुछ किए ही यहां के लोग पश्चिमी सभ्यता का पालन जोरों-शोरों से कर रहे हैं तो पश्चिमी देशों के लोगों को अपनी सभ्यता का प्रचार करने की आवश्यकता ही नहीं है। आज हर मुल्क अपनी ख़ास पहचान को कायम किये हुवे है फिर हम क्यों किसी और की तरफ बदलाव के लिए देख रहे है ,क्या विरासत में मिली पहचान इतनी फीकी पड़ चुकी है या यु कहे की हम मानसीक गुलाम बनना चाहते है। उदाहरण के तौर पे जैसे के यह माना जाता है कि आज के समय में अंग्रेजी भाषा आना बहुत जरूरी है। इसके अभाव में देश की तरक्की में रूकावटे आती है और व्यापार करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। बड़ी-बड़ी कंपनियों से लेकर एक सामान्य कंपनी में अंग्रेजी भाषा की मांग की जाती है।

 

ऐसा माना जाता है अंग्रेजी ना आने पर आप चाहे कितने भी पढ़े-लिखे, बुद्धिमान हो आपको नौकरी नहीं मिल सकती और आप तरक्की नहीं कर सकते है। देश तरक्की नहीं कर सकता है। अगर ऐसा होता तो जापान जैसा देश जो आज पूरी दुनिया में जाना जाता है अपने खास तकनीकी के लिए शायद वो ना जाना जाता। वहां के लोगों को अंग्रेजी नहीं आती लेकिन फिर भी वह देश तरक्की कर रहा है। वहां की टेक्नोलॉजी बहुत आगे है तो यह कहना गलत होगा कि अंग्रेजी ना आने पर इंसान कुछ कर नहीं सकता, आगे नहीं बढ़ सकता। हमारे देश को आदत है गुलामी करने की। किसी दूसरे देशों द्वारा थोपी गई चीजों को अपनाने की। लेकिन सच तो ये है। हम गुलामी करना चाहते हैं जैसे ढाई सौ साल पहले जब अंग्रेज भारत में व्यापार करने के बहाने आए थे और बाद में उन्होंने यहां के लोगों को ही गुलाम बना लिया और यही शासन करने लगे और हम उनके नौकर बन गए। वो हमारे'भाग्य विधाता'बन ग‌ए और हम पर ज़ुल्म भी ढाहे । तब से हमारी आदत बन चुकी है गुलामी करने की लेकिन उस समय कुछ साहसी वीरों के बलिदान की वजह से आज हमारा देश आजाद है। उस समय अंग्रेज तो चले गए लेकिन अंग्रेजों की खासियत यही छोड़ गए और यहां के कुछ लोगों ने उसे अपना लिया और उन चीजों का जोर-शोर से प्रचार करने में लगे हुए हैं। 

 हमारे देश के लोगों को अपनी मातृभाषा भले ही ढंग से बोलने ना आती हो लेकिन इस बात पर उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती। लेकिन हां अंग्रेजी अगर किसी को ना आती हो तो उस बात का मजाक जरूर बन जाता हैं या शर्मनाक जरूर करार दे दिया जाता हैं। लेकिन अंग्रेजी भाषा बोलने पर नाज जरूर करते हैं। कितनी अजीब बात है ना अपने ही देश के लोगों को अपने ही देश के बारे में नहीं पता, अपने देश के चीजों के बारे में नहीं पता, यहां की सभ्यता और संस्कृति, रीति-रिवाज के मायने नहीं पता लेकिन दूसरे देश की सभ्यता और परंपरा और बातों का लोगों को बहुत ध्यान रहता है।


उदाहरण के तौर पर जैसे कि आज के हमारे देश के नौजवानों का पश्चिमी सभ्यता के तौर-तरीकों का बखूबी पालन करना। हर किसी को फरवरी के वह दिन याद होते हैं। जब कभी टैडी डे, चॉकलेट डे,हग डे,किस डे,वैलेंटाइंस डे आता है, और हर किसी के जुबान पर यह दिन होता और लोगों को याद भी रहता है। लोग उसको बहुत अच्छे तरह से मनाते भी हैं। एक हैरान कर देने वाली बात यह भी है एक अखबार में मिली खबर के मुताबिक वैलेंटाइन डे आने के दो दिन पहले ही होटलों में कमरों की बुकिंग फुल हो जाती है। कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स और कोंडोम कि खरीदारी बढ़ जाती है। लोग बहुत धड़ल्ले से इन सब चीजों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन उन्हें क्या पता ऐसा सामान बनाने वाली कंपनीयों को भी ऐसे ही निठल्ले लोगो की ही आवश्यकता होती है जो उनके व्यापार को बढ़ाने में सहायक होते हैं। लोग ऐसी कंपनियों के बनाए जाल में फंसते जा रहे हैं जिनका मकसद सिर्फ पैसा छापना है और लोगों को इन सब चीजों में उलझा के रखना जिससे वह अपना कारोबार बढा सके। जिससे कंपनियों को फायदा होता है, जिन्हें बिना किसी मेहनत के अपना सामान बाजार में बेचने का एक माध्यम मिल चुका है बेवकूफ लोगों द्वारा। किसी को चाहना गलत बात नहीं है ये एक तरह की भावना है जो इंसान होने के नाते लाजमी है। 

 
 किसी को जानने के लिए उसके साथ समय गुजारना भी जरूरी है लेकिन किसी भी काम के पीछे एक सही नजरीया और सही सोच होनी चाहिए। लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह भी है जिसे आप के लिए स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। लेकिन आज के समय की हकीकत है। आज के समय में लोग एक-दूसरे को जानने-समझने का मतलब बिस्तर तक पहुंचना या बिस्तर सांझा करने से समझते हैं। अगर आपको आज के समय की हकीकत को जानना है तो आज ही समय के नौजवानों के बीच रहना शुरू कर दें, आपको आज के जमाने की असलियत पता चल जाएगा। ऐसा नहीं है कि आज के समय में सारी चीजें बुरी है लेकिन ज्यादातर चीजें बुरी हो चुकी है। जो आपने कभी शायद सपनों में भी ना सोचा हो और आज के बदलते जमाने की तस्वीर आप अपनी आंखों से देख सकते हैं। 

वास्तवव में लोग वैलेंटाइन डे नहीं हवस का दिन मनाते है। उस दिन लोग अपनी हवस पूरी कर रहे होते हैं जिसको लोग प्यार-मोहब्बत का नाम दे देते हैं। भले ही उस शब्द से उनका दूर-दूर तक कोई नाता ना हो। लेकिन आज की नौजवानों से यदि हमारे देश का इतिहास पूछ लिया जाए, हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता के बारे में पूछ लिया जाए या यहां पर समय-समय पर आने वाले त्योहारों और रीति-रिवाज के बारे में पूछ लिया जाए या फिर शहीद दिवस या गणतंत्र दिवस के बारे में पूछ लिया जाए तो उन्हें इसके बारे में कुछ भी बताने में असमर्थ होते है ,या इसके बारे में उन्हें पूरी जानकारी नहीं होती है। लेकिन दूसरे देश की परंपरा और रीति-रिवाज का भली-भांति पालन करते हैं। ऐसी परिस्थिति को देख के एक कहावत याद आती है ऐसे लोगों के लिए "धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का" ऐसे लोगों की ऐसी हालत होती है। जो ना दुसरे की सभ्यता को पुरी तरह अपना पाते और ना अपने देश के हो पाते हैं। हालांकि यह जाहिर सी बात है हर देश दूसरे देश से कुछ न कुछ सीखता है और उसमें से कुछ अच्छी आदतें अपने यहां शामिल करते है। और इस तरह से व्यवहारों का संस्लेषण और उनका प्रचार प्रसार होता है। लेकिन अपने आपको पूरी तरह किसी और देश की परंपरा में पूरी तरह से खुद को ढाल लेना यह कहां की समझदारी है। इतिहास गवाह रहा है जब भी किसी ने अपनी सभ्यता और संस्कृति को भुलाकर आगे बढ़ने की कोशिश की है उस देश का और उस देश में रहने वाले लोगों का नामोनिशान मिट जाता है उनकी कोई पहचान नहीं रह जाती। यह सत्य है चाहे आप माने या ना माने हकीकत यही है।
 
क्या आपने कभी सोचा है? कि यह कौन लोग हैं और ये लोग आते कहा से है । वह आपके जैसे ही किसी के घर से होंगे। क्या लोगों को इतनी आजादी दे दी गई है की वो समाज में गंदगी फैलाए, जिससे हमारी सभ्यता और संस्कृति खतरे में पड़ गई है। जो हमारी आने वाली पीढ़ी को भ्रमित कर रही हैं। इन सब चीजों का हमारे आने वाले पीढ़ी पर क्या असर पड़ेगा। इस विषय पर क्या आपने कभी सोचा हैं? आज के समय में ज्यादातर लोगों को राह चलते-फिरते कभी भी किसी से भी प्यार हो जाता है, है ना कितनी अजीब बात "प्यार" जैसी सुन्दर चीज आज समय में बाजारू, वेश्यावृत्ति और देह-व्यापार बन के रह गया है जो हर गली-मोहल्ले और चौराहे पर बिक रहा है। जब कभी आप सड़क पर निकलते हैं तो आप अपने आस-पास पाएंगे कि हर गली-मोहल्ले और नुक्कड़ पर लैला-मजनू की जोड़ी देखने को मिल ही जाती है। जिनका सार्वजनिक स्थलों पर एक-दूसरे के लिए प्यार फूट-फूट कर बाहर आता है। जिनको यह भी होश नहीं होता कि उनके अगल-बगल बुजुर्ग लोग और बच्चे भी हैं। ऐसे लोगों को अगर उस भीड़ में से कोई एक भी सज्जन व्यक्ति एक जोर का झापड़ ऐसे लोगों को दे दें तो उनकी टिक-टॉक और फिल्म वाली सारी आशिकी वही झड़ जाए। जो कि एक-दूसरे के लिए कुछ ही दिन के लिए मेहमान होते हैं। 

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लड़कों से ज्यादा लड़कियों इन सब चीजों में आगे बढ़ गई हैं। सड़क पर नशा करके हल्ला करना लोगों का फैशन बन गया हैं, जिंदगी जीने का तरीका बन गया है, उनकी आजादी हो गई है और ऐसे लोगों की विचारधारा होती है अगर जिंदगी में यह सब नहीं किया तो जिंदगी बेकार है यह सिरफिरे लोगों की मानसिकता है जो समाज में गंदगी फैलाने को अपनी आजादी का नाम देते हैं। आज देश और समाज में कई तरह की समस्याएं हैं और इन समस्याओं को ठीक करने में आज का नौजवान बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लेकिन वह ऐसा नहीं करता है। आज के नौजवानों का उस पर ध्यान नहीं जाता और ना ही उसके लिए काम करना चाहते हैं। लेकिन बेफिजूल के कामों के लिए उनके पास समय है। देश में किसी भी तरह की मुसीबत होने पर लोग सरकार को हर चीज का जिम्मेदार ठहरा देते हैं और अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं। यकीन मानिए इन सब चीजों में ज्यादातर ऐसे लोगो की भागीदारी है जो नौजवान पढ़ाई-लिखाई और नौकरी के बहाने घर से बाहर रह रहे हैं। जिन नौजवानों का परिवार उनके साथ नहीं रह रहा होता है। उनके मन में एक तरह की विचारधारा विकसित होती है कि उनको देखने वाला या उन पर नजर रखने वाला उनके परिवार का कोई व्यक्ति साथ नहीं रह रहा है और ना ही उनके परिवार को उनकी खबर होती है। तो वह कुछ भी करने के लिए बाहर आजाद है। उनको देख भी कौन रहा है और इस चीज का वह का गलत फायदा उठाते हैं। लेकिन यह कोई जरूरी नहीं है कि सभी ऐसे ही हैं लेकिन ज्यादातर ऐसे ही हैं।

 जिन नौजवानों का परिवार उनके साथ रह रहा है ऐसे नौजवान भी ऐसे कामों में लिप्त है लेकिन ऐसे लोगों की तादाद बाहर रहने वालों की तुलना में कम है। ऐसे परिवार जिनका अपने बच्चों पर कोई नियंत्रण नहीं है या अपने बच्चों से बहुत कम संपर्क रखते है, अपने बच्चों को संस्कार नहीं दे पाते हैं, बच्चों के साथ समय नहीं गुजार पाते हैं। ऐसे बच्चे या नौजवान आजादी के नाम पर गलत चीजें कर रहे हैं। अगर आजादी का मतलब समाज में गंदगी फैलाना होता है तो ऐसी आजादी किसी को नहीं दी जानी चाहिए। अगर अब भी हम नहीं संभले तो वह दिन दूर नहीं जब दूसरे देशों द्वारा हमें दोबारा गुलाम बना लिया जाएगा क्योंकि हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता से कोई वास्ता नहीं है, वो कहते है न जिसे जड़ की खबर नही वो दवा का ताशिम क्या बताये , जिसे फर्क नही मुल्क की मिटटी से वो गुलामी का दर्द कैसे बताये .. वो होली के सामूहिक रंग ,वो फागुनी बयार ,वो दीपो की रोशनी, वो ईद की सेवइया, वो पक्के हुवे आम , सब कुछ कैद होकर रह गया है 20*10 के रूम में और 9 से 6 की शिफ्ट में ,वो पारम्परीक बाजारों का स्वरुप मॉल ने ले लिया ,वो माँ की रोटी को पिज़्ज़ा खा गया, लस्सी को कोल्ड ड्रिंक निगल गई , और तो और 6 गज की साड़ी को जीन्स ने काले पानी की सजा दे दी ,आवारापन आजादी हो गई , लिव-इन में बलात्कार की आबादी हो गई , अंग्रेजी का फैसन सर पे चढ़ गया ,हिंदी का खिला आहिस्ते अहिस्ते ढह गया  

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8 comments:

  1. Replies
    1. Thank you ..we will keep writing ,pls provide your valuable inputs when u will visit the next .

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  2. This is the right way to know our history.

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    Replies
    1. I m agree history teach us how to be prepare for the future ..We should learn learn from the past ...

      Thank you ji

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  3. Replies
    1. Thank you for your valuable time .

      Wish to see u here again

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