Reservation- an endless debate and unfair judgements
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हमारे देश में Reservation एक बड़ा मुद्दा है। जब भी इसे हटाए जाने की बात होती है लोग सड़कों पर उतर जाते हैं। हमारे समाज में दो तरह के लोग हैं एक वो जो पढ़ा-लिखा और समझदार तबका है जो इसे हटाए जाने के पक्ष में है। जिसके अनुसार Reservation जैसा प्रावधान सिर्फ आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को ही दिया जाना चाहिए। और दूसरा तबका यह मानता है कि आरक्षण को नहीं हटाना चाहिए। मेरा यह बिल्कुल भी मानना नहीं है की आरक्षण को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए। जो लोग वास्तव में इसके हकदार हैं सिर्फ उन्हीं को Reservation दिया जाना चाहिए। गरीब लोगों को आरक्षण दिया जाना चाहिए। जाति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ।
Reservation- बैसाखी या हक
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पहले के समय में और आज भी कुछ जगहों पर जाति के आधार पर समाज में बहुत ही ज्यादा भेद-भाव किया जाता है। पिछड़ी जाति, वर्ग और समूह के लोगों को उच्च जातियों द्वारा शोषित और दबाया-कुचला जाता था और अभी भी कई जगह पर यह पाया जाता है। यह प्रणाली और व्यवस्था काफी हद तक बदल चुकी है। लेकिन फिर भी यह स्थिति गांव-देहात और कुछ अन्य क्षेत्रों में अभी भी कायम है। लेकिन काफी हद तक इन चीजों में सुधार हुआ है। अब जाती वर्णन जैसी व्यवस्था आज के समय में ज्यादा मायने नहीं रखती है। लोग पिछड़ी जाति का सहारा लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं। सरकार द्वारा दी जाने वाली सभी सुविधाएं पाना चाहते हैं। जिससे उन्हें ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता ना पड़े।
जाति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। गरीब लोगों को आरक्षण दिया जाना चाहिए और गरीब वह होता है जो दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज होता है। जो आर्थिक रूप से पिछड़ा होता है और अपने पेट से गरीब होता है। भारत में आरक्षण की व्यवस्था लगभग सभी विभागों में है। जैसे कि सरकारी और उच्च शिक्षण संस्थाओं मे, विभिन्न राज्यों के विधानाभओं में भी आरक्षण की व्यवस्था है।
आपने अक्सर देखा होगा कि आज के समय में अधिकतर होने वाले सरकारी परीक्षाओं में एसटी और एससी जाति वर्ग के बच्चों का सिलेक्शन ज्यादा होता है और फिर यह भी पाया जाता है की उनके भी मां-बाप पहले से ही किसी उच्च पद स्थानांतरित होते हैं। जिनका फैमिली बैकग्राउंड काफी अच्छा होता है। जो कि अपने बच्चों का अच्छे से पालन-पोषण कर सकते हैं लेकिन ऐसे लोग पिछड़ी जाति का सहारा लेकर तरक्की करना चाहते हैं और जीवन में आगे बढ़ते हैं। ऐसा होने से ऐसे विद्यार्थी जिन्हें वाकई सरकारी संस्थाओं और विभागों की आवश्यकता होती है और वो वास्तविक रूप से पिछड़े है ऐसे लोगो की सीटे जो वास्तव में आरक्षण के हकदार नही है द्वारा खा ली जाती है i
Reservation- का हकदार कौन ??
सच कहा जाए तो Reservation गरीबों और दलितों को मिल ही नहीं रहा है। इसका फायदा अमीर दलितों को मिल रहा है और ऐसे लोग आरक्षण के दम पर काफी तरक्की कर चुके हैं। ऐसे लोग जो वास्तव में गरीब है और आर्थिक तौर से पिछड़े हैं। जिसे सरकार द्वारा बनाए गए तमाम तरह की योजनाएं और सुविधाएं नहीं मिलती है और वंचित है । वो लोग जो पिछड़ी जाति से संबंध रखते हैं या
हैं उच्च जाति के हैं और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं जिन्हें वास्तव में reservation की आवश्यकता है।
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लेकिन देखने को तो यही मिलता है की अगर कोई विद्यार्थी उच्च जाति से तालुकात रखता है तो कड़ी मेहनत करने के बावजूद भी वह परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाता या वह मुकाम वह हासिल नहीं कर पाता। वहीं पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले विद्यार्थी सिर्फ जाति के आधार पर कम अंक लाकर भी सरकारी संस्थाओं और विभागों में वह मुकाम हासिल कर लेते है जो उच्च जाति से ताल्लुकात रखने वाले विद्यार्थी हासिल नहीं कर पाते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है की यह कहां तक न्याय संगत है ?
पिछड़ी जाति, समुदायों तथा अनुसूचित जाति और जनजातियों को समाज में उनका हक दिलाने के लिए और सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक तैर से पिछड़े होने के कारण सरकार Reservation जैसी प्रावधान को लेकर आई। जिससे पिछड़ी जनजातियो और अनुसूचित जातियों को समाज में उनका हक दिला सके और उन्हें उठाने में उनकी मदद कर सके।
आजादी के बाद भारत के संविधान में Reservation का प्रावधान किया गया था। जिसमें शुरुआत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए 10 वर्ष के लिए reservation दिया गया था। उच्चतम न्यायालय के अनुसार अधिकतम आरक्षण है। जबकि कई राज्यों में ये सीमा 50% से अधिक हो चुकी है ऐसे में सवाल ये उठता है की क्या देश का सरकारी तंत्र और सरकार एक बड़े वर्ग को आरक्षण की रोटी पर पालना चाहती है ????
भारत में आरक्षण का इतिहास आजादी से पहले का है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर में आरक्षण की शुरुआत 1902 में छत्रपति शाहूजी महाराज ने की थी।
(1)-1932 पूना पैक्ट- ऐसे लोग जो शोषित और दबे कुचले तबके में आते है। उनके लिए राज्य विधानसभा में 148 सीटों में केंद्र में 18% सीटें आरक्षित हैं।
(2)-1937- समाज के दबे-कुचले तबको के लिए सीटों का आरक्षण गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में शामिल किया गया।
(3)-1942- डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने ब्रिटिश सरकार से सरकारी नौकरी और शिक्षा के संस्थानों में आरक्षण मांग को स्वीकार करने को कहा था।
(4)-1950- संविधान में एससी और एसटी के लिए संरक्षण के लिए प्रावधान सुनिश्चित किया गया।
(5)-1953-ओबीसी जाति की पहचान के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया।
(6)-1963-सुप्रीम कोर्ट का आदेश व्यवस्था में आरक्षण 50% से अधिक नहीं।
( 7)-1978-ओबीसी के लिए मंडल आयोग का गठन किया गया जिसमें ओबीसी को 27% आरक्षण दिया गया।
(8)-1989-उस समय के प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने सरकारी नौकरियों में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने का ऐलान किया है जिससे देशभर मैं हिंसा प्रदर्शन हुआ।
(9)-1992-सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के लिए 27% आरक्षण बरकरार रखा 50% आरक्षण सीमा तय की गई।
(10)-1995-आर्टिकल 16 में 77वें संविधान संशोधन में एसटी और एससी आरक्षण जारी करने की इजाजत।
(11)-1997-81वा संशोधन के बाद बैकलॉग आरक्षण वैकेंसी को अलग समूह में रखनी की मंजूरी दे दी गई। और आरक्षण 50% की सीमा से बाहर कर दिया गया।
(12)-2000-आर्टिकल 335 प्रावधान करने के लिए 82वा संविधान संशोधन एसटी/एससी उम्मीदवारों को छोड़ दे दी गई बाद में इन सभी संशोधनों की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
(13)-2006-सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन को हरी झंडी दे दी।
(14)-2007-उत्तर प्रदेश में नौकरी में प्रमोशन लेने के लिए आरक्षण की शुरुआत।
(15)-2012-सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलील खारिज कर दी यह कहते हुए की उत्तर प्रदेश की सरकार जाति के आधार पर आरक्षण को स्थाई ठहराना चाहती है जिसके लिए ना ही उसके पास पर्याप्त आंकड़े हैं नहीं पर्याप्त सबूत।
(16)-2019-फिर 2019 में बीजेपी की सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े हुए उच्च वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्था में 10% का reservation देने का ऐलान किया।
लेकिन देखने को तो यही मिलता है की अगर कोई विद्यार्थी उच्च जाति से तालुकात रखता है तो कड़ी मेहनत करने के बावजूद भी वह परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाता या वह मुकाम वह हासिल नहीं कर पाता। वहीं पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले विद्यार्थी सिर्फ जाति के आधार पर कम अंक लाकर भी सरकारी संस्थाओं और विभागों में वह मुकाम हासिल कर लेते है जो उच्च जाति से ताल्लुकात रखने वाले विद्यार्थी हासिल नहीं कर पाते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है की यह कहां तक न्याय संगत है ?
पिछड़ी जाति, समुदायों तथा अनुसूचित जाति और जनजातियों को समाज में उनका हक दिलाने के लिए और सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक तैर से पिछड़े होने के कारण सरकार Reservation जैसी प्रावधान को लेकर आई। जिससे पिछड़ी जनजातियो और अनुसूचित जातियों को समाज में उनका हक दिला सके और उन्हें उठाने में उनकी मदद कर सके।
आजादी के बाद भारत के संविधान में Reservation का प्रावधान किया गया था। जिसमें शुरुआत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए 10 वर्ष के लिए reservation दिया गया था। उच्चतम न्यायालय के अनुसार अधिकतम आरक्षण है। जबकि कई राज्यों में ये सीमा 50% से अधिक हो चुकी है ऐसे में सवाल ये उठता है की क्या देश का सरकारी तंत्र और सरकार एक बड़े वर्ग को आरक्षण की रोटी पर पालना चाहती है ????
Reservation: का इतिहास और समय के साथ बदलाव
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भारत में आरक्षण का इतिहास आजादी से पहले का है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर में आरक्षण की शुरुआत 1902 में छत्रपति शाहूजी महाराज ने की थी।
(1)-1932 पूना पैक्ट- ऐसे लोग जो शोषित और दबे कुचले तबके में आते है। उनके लिए राज्य विधानसभा में 148 सीटों में केंद्र में 18% सीटें आरक्षित हैं।
(2)-1937- समाज के दबे-कुचले तबको के लिए सीटों का आरक्षण गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में शामिल किया गया।
(3)-1942- डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने ब्रिटिश सरकार से सरकारी नौकरी और शिक्षा के संस्थानों में आरक्षण मांग को स्वीकार करने को कहा था।
(4)-1950- संविधान में एससी और एसटी के लिए संरक्षण के लिए प्रावधान सुनिश्चित किया गया।
(5)-1953-ओबीसी जाति की पहचान के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया।
(6)-1963-सुप्रीम कोर्ट का आदेश व्यवस्था में आरक्षण 50% से अधिक नहीं।
( 7)-1978-ओबीसी के लिए मंडल आयोग का गठन किया गया जिसमें ओबीसी को 27% आरक्षण दिया गया।
(8)-1989-उस समय के प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने सरकारी नौकरियों में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने का ऐलान किया है जिससे देशभर मैं हिंसा प्रदर्शन हुआ।
(9)-1992-सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के लिए 27% आरक्षण बरकरार रखा 50% आरक्षण सीमा तय की गई।
(10)-1995-आर्टिकल 16 में 77वें संविधान संशोधन में एसटी और एससी आरक्षण जारी करने की इजाजत।
(11)-1997-81वा संशोधन के बाद बैकलॉग आरक्षण वैकेंसी को अलग समूह में रखनी की मंजूरी दे दी गई। और आरक्षण 50% की सीमा से बाहर कर दिया गया।
(12)-2000-आर्टिकल 335 प्रावधान करने के लिए 82वा संविधान संशोधन एसटी/एससी उम्मीदवारों को छोड़ दे दी गई बाद में इन सभी संशोधनों की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
(13)-2006-सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन को हरी झंडी दे दी।
(14)-2007-उत्तर प्रदेश में नौकरी में प्रमोशन लेने के लिए आरक्षण की शुरुआत।
(15)-2012-सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलील खारिज कर दी यह कहते हुए की उत्तर प्रदेश की सरकार जाति के आधार पर आरक्षण को स्थाई ठहराना चाहती है जिसके लिए ना ही उसके पास पर्याप्त आंकड़े हैं नहीं पर्याप्त सबूत।
(16)-2019-फिर 2019 में बीजेपी की सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े हुए उच्च वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्था में 10% का reservation देने का ऐलान किया।
Reservation - कितना तर्कसंगत है ??
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देश की तरक्की के लिए प्रतिभाशाली और ज्ञानी नौजवानों और लोगों की आवश्यकता होती है। सोचिए अगर यही हाल अमेरिका में होता तो क्या वह देश इतनी तरक्की कर रहा होता? जहां पर इंसान को उसकी हैसियत के अनुसार औंधा और कोई पद दिया जाता है। आरक्षण की वजह से आज भारत में सरकारी नौकरी हो या कोई भी शिक्षा की संस्था जहां पर आरक्षण की वजह से हाहाकार मचा हुआ है।प्रतिभाशाली और ज्ञानी नौजवान जो इस आरक्षण के झूले पर झूल रहे हैं। जो इस आरक्षण की भीड़ में दबकर रह जाते हैं और कम पढ़े लिखे लोग जो आज ऊंचे पदों पर अधिकारी बने बैठे हैं।
होना तो यह चाहिए जो जिस पद के योग्य है उसे वहीं पद दिया जाना चाहिए। जो जिस क्षेत्र में काबिल है उसे उस क्षेत्र में जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर जब भी आईएएस, पीसीएस का फॉर्म निकलता है तो लाखों बच्चे उसके लिए अप्लाई करते हैं लेकिन अधिकतर ऐसे बच्चे होते हैं जिनकी उस क्षेत्र में कोई रूचि नहीं होती है जिसकी वजह से उस क्षेत्र में ऐसे भी बच्चे होते हैं जो सिर्फ भीड़ बढ़ाने का काम करते हैं जो उस पद के लिए योग्य नहीं होते और बेरोजगारी भी बढ़ाते हैं। विद्यार्थी सरकारी नौकरी के चक्कर में अपने कई कीमती साल बर्बाद कर देते हैं और उन्हें बाद में यह महसूस भी होता है की उन्होंने एक सरकारी नौकरी के चक्कर में पड़कर अपने कितने कीमती साल बर्बाद कर दिए ।
यदि वह उसी समय को वह अपने मनपसंद क्षेत्र में लगाते तो शायद वह काफी सफल और खुश रहते। वह उस चीज के पीछे भागते हैं जिसमें ना उनकी कोई रूचि होती है और ना ही उनका कोई भविष्य। जिसकी वजह से वह डिप्रेशन में चले जाते हैं और आत्महत्या तक कर लेते हैं। हर किसी को उसके प्रतिभा और ज्ञान के हिसाब से ही चीजें मिलने चाहिए। ऐसा होने पर ज्ञानी और प्रतिभाशाली लोगों के साथ इंसाफ होगा। देश में पढ़ाई के नाम पर लूटने वाली संस्था या कोचिंग इंस्टीट्यूट, धोखा-धड़ी, सीटों का बिकना बंद हो जाएगा। देश तरक्की के मार्ग पर और तेजी की रफ्तार से आगे बढ़ेगा।
Resevation-निष्कर्ष
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किसी भी व्यवस्था में प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत सर्वोपरि होता है , और प्राकृतिक न्याय ये कहता है की सिर्फ जन्म , रंग ,भेद और ,स्थान के अलग होने पर पर किसी के साथ नाइंसाफ़ी नही की जा सकती । हैरानी की बात तो ये है की आजादी के लगभग 70 सालो बाद भी कुछ कुरूतियो ने अपना स्थान और मजबूत कर लिया है ।
जो व्यवस्था किसी के पुनरउत्थान के लिए बनी थी आज वो गर्व का विषय हो गया है । जरुरी ये है की सरकार औरयुवा भारतीय इस इस जात-पात की व्यवस्था और जात-पात के साथ जुड़े आरक्षण को सही मायने में सही लोगो तक पहुचाने में मदद करे ।एक तबका जिसे जरुरत है समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए उसे ये दिया जाए । reservation को बजाये एक बैसाखी के एक सार्थक सरकारी सहायता जो गरीबो और पिछडो के लिए बनी है की तरह लिया जाना चाहिए । वरना घर- घर की राजनीती वाले भारत देश में आरक्षण घर जलाने की राजनीतिक व्यवस्था बन कर रह जाएगा .....
(इस लेख का मुख्य उद्देश्य आरक्षण की सार्थकता को समझाना है ,लेखक किसी भी जाती और समूह का नेतृतव नही करता )
(पूर्वी)
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