बाहर की चकाचौंध भरी दुनिया में आज के नौजवान खोते जा रहे हैं। उन्हें समझाने वाला कोई नहीं है। वो एक ऐसी चीज़ के पीछे भाग रहे हैं जहां उन्हें अन्त में कुछ भी नहीं मिलने वाला है सिवाय बर्बादी के क्योंकि बुरी चीजे लूभावनी और आकर्षक जरूर होती है लेकिन वो इन्सान को गढ़े में ढकेलने का काम करती है।
आज के नौजवान शराब, सिगरेट,गुटका खाने में, सड़कों पर आवारागर्दी करने व्यस्त है। अपने आप को व्यस्त दिखा के खुद को धोखे में रखना और बची-खुची कसर जो है वो आज के समय में चल रही फ़िल्मों में परोसे जाने वाली अश्लीलता पूरी कर देती है। फिल्म निर्माताओं का ऐसी फिल्में बनाने का मकसद ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना होता है लेकिन उन्हें ये समझ नहीं आता कि वो ऐसी फिल्में बना के नौजवानो को क्या सिख दे रहे हैं। ये सब चीजें आज के बच्चों को ग़लत रास्ते पर ले जा रही है। लेकिन बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के लिए अन्य कई देशों में सख्त कानून बनाऐ गऐ है वो इस तरह के है:-
(1):- यूएई- सयूत्त अरब अमीरत में बलात्कारी को सीधे मौत की सजा सुना दी जाती है।
(2):-सउदी अरब- सउदी अरब में शरीया कानून लागू हैं। इसके मूताबिक बलात्कारी को फांसी पर लटका दिया जाता हैं या उसके गुप्त अंगों को काट दिया जाता है।
(3):-चीन- चीन में मेडिकल जांच में प्रयाणीत हो जाने पर मृत्यु दे दी जाती है।
(4):-इराक- इराक में इस तरह के अपराध करने वाले को पत्थर से मारा जाता है और तब तक मारा जाता है जब तक कि उसकी मौत ना हो जाए।
(5):-इंडोनेशिया- इंडोनेशिया में बलात्कारी को नपुंसक बना दिया जाता है।
(6):-ऊतर कोरिया- यहां बलात्कारी के सिर में गोलियां दागी जाती है ताकि उसे दर्दनाक मौत मिले।
(7):-मिस्र- मिस्त्र में बलात्कारी को फांसी पर लटका दिया जाता है।
(8):- इरान- मौत की सजा सुनाई जाती है।
इन देशों में जो सख्त कानून बनाए गए हैं क्या वह भारत जैसे देश के लिए सही है ? जहां विभिन्न धर्म और जाति के लोग रहते हैं जहां की सभ्यता और रीति-रिवाज और परंपरा पूरी दुनिया में जानी जाती है। जिसकी पूरी दुनिया में एक अलग पहचान है और छवि है जहां इंसानीयत सबसे पहले है। तो ऐसे में सवाल उठता है क्या सिर्फ सख्त कानून बना देने से हमारे समाज में अपराध थम जायेंगे । लेकिन मेरा मानना है,इसके लिए सबसे पहले हमें हमारे घर से शुरुआत करनी चाहिए जब तक हमारे घर में सुधार नहीं होगा तब तक यह समाज नहीं बदलेगा क्योंकि सभी घरों को मिलाकर एक समाज का निर्माण होता है , और जब घर अच्छे होंगे तो समाज अपने आप सुधर जाएगा।
एक सवाल और उठता है। जब एक लड़की या बच्ची किसी भी घर में पैदा होती है और जब वह थोड़ी बड़ी होती है तो उसके कंधों पर घर की थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारियां दि जाने लगती हैं जैसे तुम लड़की हो तुम्हें घर का काम करना चाहिए क्योंकि तुझे अगले घर जाना है तो इसलिए तुम्हें घर का काम आना चाहिए। इस सोच के साथ उससे, घर का चूल्हा-चौका, साफ-सफाई, कपड़े- लत्ते आदि धुलवाए जाते है। उसे सबकी जरूरतों का ख्याल रखने की सीख दी जाती है और यह चीजें उसके पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद से कहीं ज्यादा जरूरी समझी जाती है जैसे पढ़ाई-लिखाई खेल कुछ जैसी चीजें उसके लिए है ही नहीं। क्या वह कोई इंसान नहीं है? क्या वह एक मशीन है या या घर में सजाई जाने वाली वस्तु।
बच्ची पैदा होते ही हमारा यह समाज अपने मान-सम्मान के ताज का बोझ उस छोटी सी बच्ची के सिर पर लाद देता है जिसे वह जन्म से लेकर मृत्यु तक बिना किसी सवाल-जवाब के अपने इच्छाओं का गला घोट के जिंदगी भर ढोती रहती है। अगर वह चुपचाप सब कुछ सहती रहती है तो लोग उसे कायर समझते हैं।अगर वह सवाल-जवाब करने लगती है तो लोग उसके बत्तमीज कहते हैं और ना जाने किस-किस नाम से बुलाते हैं। लेकिन यही कायर लोग समाज की बुराइयों से लड़ने के बजाय अपने बेटी और बहू को घर की चारदीवारी में कैद करके रखना पसंद करते हैं और अपने आप को बहुत ही प्रतिष्ठित और महान समझते हैं।
वही जब एक लड़के की बात आती है। तो उसे किसी तरह की जिम्मेदारी और मान-सम्मान की बेड़ियों से नहीं बांधा जाता उसे यूं ही खेल-कूद करने के लिए बाहर भेज दिया जाता है सारी मान-सम्मान, सभ्यता ,संस्कार का पाठ लड़कियों को दिया जाता है और लड़कों को यूं ही छोड़ दिया जाता है अगर उसमें से थोड़ी भी मान-सम्मान और संस्कार का पाठ उन्हें भी सिखाया जाता तो शायद इतनी घटनाऐं ना होती।
अकसर लड़कियां जब भी बाहर निकलती है तो उनके घरवालों के हजार सवाल होते हैं।कहां जा रही हो ? क्या काम है ? कब तक आओगी ?किसके साथ जा रही हो। लेकिन अगर वहीं लड़का घर से बाहर जाता है तो कोई सवाल नहीं पूछे जाते और अगर गलती से किसी ने पूछ लिया तो लड़के ने जो कुछ भी मनगढ़ंत कहानी बना के बोल दी तो उसे सच मान लिया जाता है। उस समय कोई जांच-पड़ताल करने नहीं जाता।
अगर लड़की स्कूल जाती है तो स्कूल का समय खत्म होने पर उसे सीधा घर में होना चाहिए। ऐसा लोगों की सोच है। अगर लड़की नौकरीपेशा है। तो उसके शाम के 6:00 बजे तक घर में होना चाहिए। यह लोगों की सोच है। लेकिन कोई यह नहीं सोचता है की अगर लड़की शाम के 6:00 बजे तक घर में होनी चाहिए। तो उनके लड़के शाम के 6:00 बजे तक घर में क्यों नहीं होनी चाहिए। ऐसा वह क्या करते हैं इतनी देर तक बाहर क्यों रहते हैं। इसकी कोई जांच-पड़ताल नहीं करता है। यही हमारे समाज की सोच है।
जब भी कोई लड़का अपने घर में यह कहता है कि उसे घूमने जाना है या वह घूमने जा रहा है।तो उससे कोई सवाल-जवाब नहीं किया जाता। उसे आसानी से जाने दिया जाता है। उससे उसके घर के लोग का कोई लेना-देना नहीं होता है। कि वह बाहर जाकर क्या करने वाला है ?किसके साथ जा रहा है ? कहां जा रहा है, किन लोगों के साथ हैं? इन सब बातों से उनका कोई मतलब नहीं होता। किसी को भी इस बात की चिंता नहीं होती है। कि वो वाकयी बाहर घूमने जा रहे हैं या किसी अपराध को अंजाम देने या फिर किसी राह चलती लड़की के लिए खतरा हो सकते हैं, किसी लड़की को मानशिक शोषण कर सकते हैं। तब इस समाज को चिंता नहीं होती है, ना ही उनके मां-बाप को जिनके बेटे बाहर घूम रहे होते, रात बाहर गुजारते हैं। लेकिन हां अगर लड़की होती तो लोगो के लिए चिंता का विषय जरूर बन जाती है अगर वह कहती कि मुझे घूमने जाना है। तो उसे नहीं जाने दिया जाता। अब सवाल यह उठता है। कि जब लड़की का घूमना-फिरना जरूरी नहीं तो लड़कों का घूमना-फिरना इतना जरूरी क्यों। अगर कभी जरूरत पड़ने पर लड़की को घर से बाहर निकलना पड़ता है तो लोगों के 36 सवाल होते हैं। उसे अपने निजी काम करने के लिए भी दुनिया भर की सफाई देनी पड़ती है।
हर मां-बाप के लिए उनका बच्चा अच्छा होता है। लेकिन सवाल यह है कि जितने भी बलात्कार के अपराध हो रहे हैं और ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाला ऐसे ही किसी का होगा सदस्य होगा और कुछ मां-बाप सब कुछ जानते हुए भी अपने बेटों को आवारागर्दी करने के लिए सड़कों पर छोड़ देते हैं क्योंकि वह लड़का है आर वो कुछ भी करें उसके लिए उनके घर वाला से कोई सवाल-जवाब नहीं किया जाएगा । ऐसे समाज की मानसिकता बनी हुई है जो भी उंगली उठाई जाएगी वो लड़की के घरवालों पर उठाई जाएगी है लड़कों के घरवालो पर नहीं। तो पहले हमें इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है तब हमारे समाज में बदलाव होगा और जब समाज बदलेगा तो दुनिया में शांति अपने-आप कायम रहेगी।
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